प्रेम | Prem
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
264
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
अश्विनी कुमार दत्त - Ashvini Kumar Datt
No Information available about अश्विनी कुमार दत्त - Ashvini Kumar Datt
रामवृक्ष बेनीपुरी - Rambriksh Benipuri
No Information available about रामवृक्ष बेनीपुरी - Rambriksh Benipuri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जीवनी
सन्ततं सानी थी कि यदि कटक फरेगा, तो पहला
फल जशविनी बादू को सेंट करूंगा | घन्य ! जन
मदात्मा गांधी वंगारु गये धे, तैः स्वयं उनसे मिलने
के लिए उनके घर गये थे ।
आजन्स घ्रह्मचारी रहने, विशेष संयम ओर
नियस रखने पर सी, कठिन परिश्रम के कारण, उनको
बहुमून्न रोग हो गया था । इस दारुण रोग से उनका
स्यास्य गिर गया था । चह चिकित्सा के लिए कल-
कत्ते आभे ये बीं १९२३ द के नवम्बर में वह
प्रेमरोक को सिधार गये । उक्त समय उनकी अवस्था
७ वपं की थी । सुनते दै, रोकमन्पि तिङ्क को भी
इसी रोग की शिकायत थौ ।
'व्रजमोहन-वियाख्यः में ही “बॉंघव-समिति*
(सित्र-मंडऊ) नःसक एक नवयुवरकों को सभा है।
उसकी पताका पर -'सत्य, प्रेम, पचित्रता*--यही
मूल-मंत्र लिखा है। उस सभा का झधिवेशन प्रत्येक
शनिवार की संध्या को होता है । उस अधिवेशन में
किसी दिश्व-व्यापफ विपय पर नियसित्त रूप से
९५
User Reviews
No Reviews | Add Yours...