राष्ट्रपिता | Rashtrapita

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Rashtrapita  by जवाहरलाल नेहरू - Jawaharlal Neharu

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहुली मुलाकात दर और दक्षिण अफ्रीका को चकित कर दिया और भारतवासिरों को यह जानकर थड़ा हुष॑ और गौरव अससव हुआ कि दक्षिण अफ्रोका में हमारे हजारों भाई-बहन हुंसते- हंसते जेल जा रहे है । अपने देश को गुलामी और नपुंसकता पर हम मन-ही-मन बड़े लज्जित थे और अब अपने हो भाई-बहुनो द्वारा दो गई इस साहसपू्ण चुनौती का नमूना देख कर हमारा आत्म-सम्भान ऊजा उठ गया । एकाएक इस प्रइन पर सारे भारतवर्ष में राजनेतिक चेतना जाग उठी और रुपया धड़ाघड दक्षिण अफ्रीका पहुंचने लगा । यह संघ तब तक बंद नहीं हुआ जब तक कि गांधीजी और दक्षिण अफ्रीका की सरकार में समभकौता नहीं हो लिया । पहली मुलाकात गाधीजी से मेरी पहली मुलाकात लखनऊ कांग्रस के समय सन्‌ १९१६ में बड़े दिनो में हुई । जिस बहादुरी के साथ वह दक्षिण अफ्रीका में लड़े थे उसके लिए हम सब उनकी प्रशंसा करते थे, कितु हममे से बहूत-से नौजवानो को वहे अपने से बहुत दूर, बिलकुल भिन्न और अराजनतिक मालूम पड़ते थे। उन दिनों उन्होने कांग्रेस या राष्ट्रीय राजनीति में भाग लेने से इन्कार कर दिया था और अपने को दक्षिण अफ्रीका के भारतीयों के प्रइन तक ही सीमित रखा था । इसके कुछ ही दिनों बाद उन्होने चम्पारन में किसानों की ओर से जो साहसिक कार्य किये और इन कार्यों में उन्हें जो विजय मिलो उससे हममें उत्साह की एक लहर दौड़ गई। हमने देखा कि वह अपने तरीकों का भारत में भी प्रयोग करने को तैयार हूं और उन तरीकों में हमें सफलता को आशा दिखाई दो। ः महासमर के बाद भारतवासी उत्सुकता के साथ प्रतीक्षा करते रहे कि देखें अब हमें क्या मिलता है। उनके मन में क्रोध था, वे लड़ने को उतारू दिखाई देते थे, उन्हे कू आक्षा मी नहो थी, फिर भी वे प्रतीक्षा में थे । कुछ हो महीनों में मई बिटिया नोति का पहला फल, जिसका कि इतनो उत्सुकता के साथ इन्तजार किया




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