चिन्तन मनन अनुशीलन भाग - 1 | Chintan Manan Anushilan Bhag - 1

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Chintan Manan Anushilan Bhag - 1  by देवकुमार जैन - Devkumar Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अनुशीलन १५. 1 क ‡ € + € € डे का काथं सच्चे धर्मसंशोधक का है । धर्म जब धर्मश्रम से पृथक्‌ कंरं दिया जायेगा तभी वह भ्रपने उज्ज्वलं रूप में दिखलाई देगा श्रौर,तभी उसकी सच्ची कीमत झांकी जा सकेगी । “जीवन मे धमं का भ्रत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान है, यहां तक कि धमं के विना. जीवन-व्यवहार भी नही चल सकता । जो लोग धमं की. भ्रावइ्यकता स्वीकार .नही करते, उन्हे भी जीवन मे धर्म का भ्राश्रय लेना ही पड़ता है, क्योकि धर्म का श्राश्रय लिये बिना जीवन-व्यवहार निभ ही नहीं सकता. है । उदाहुरणाथं--पांच श्रौर पांच दस होते- हैं, यह सत्य है श्रौर सत्य धर्म है । जिन्हे धर्म श्रावस्यक नहीं मालूम' होता उन्हें यह सत्य भी अस्वीकार, करना होगा । | ॥ अहिसा कायरों का धर्म नहीं श्रत्याचार करता. जंसेः मानसिक दौबेल्य-है,. वैसेः ही. कायरता धारण करके हृदय में जलते हुए, ऊपर से श्रत्या- चार सहन कर लेना भी मानसिक दौबंल्य है। परन्तु वास्तविक शाति घारण कर लेना यहु मानसिक उच्चता शरोर उक्षत धमं, है 1 जैसे, कोई दुराचारी मनुष्य, किसी धमंदील स्त्री. का दील हरण करता है रौर ` दूसरा ' उस } 0 हे # $ ^




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