गद्य-पथ [खंड 1] | Gadya Path [Khand 1]
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
238
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रवेश रे
जहाँगीर तथा शाहजहाँ का सुब्यवस्थित राज्यकाल; जिनकी निर्दन्द छत्र-छाया में
उनकी शान्ति-ग्रियता, कला-प्रेम तया शास्न-पवरन्ध-रूपी विपुल खाद्य-सामग्री
पाकर चिरकाल से पीड़ित भारत एक वार फिर विविध ऐश्वर्यों में लदलहा
उठा । राजा महाराजाओं ने स्वयं श्रपने हाथों से सड्ीत, शिल्प, चित्र तथा
काव्य-केसा के मूलौ कौ सचा, केज्ञामिदो को तरह-तरहं से प्रोत्साहित किया !
सद्धीते की श्राकाश-लता ्रनन्त-फङ्कासे मे चिल-चिल कर समस्त वायु-मरडल
मखा गडः मृग चना भूल गये, मृगराज .उने पर टूटना । तानसेन की सुधा-
सिब्चित रग-रागिनियां--जिन्द कदं रोपनाग सुन ले तो उसके सिर पर रखे
हुए; घरा मेरे डाँवाडोल हो जायें; इस भय से विधाता ने उसे कान नहीं दिये--
श्रमी तक हमारे वसन्तोत्सवं में कोकिलाओओं के कण्टों से मधघुखवण करती हैं ।
शिल्प तथा चित्रकलाश्ों की पावस-दरीतिमा ने सर्वत्र भीतर-चाहर राजप्रासादों
को लपेट लिया । चलुर चित्रकारों ने आपने चित्रों में भावों की सूदमता श्र
सुकुमारता, सुरें की सजधज तथा सम्पूर्णता, जान पड़ता है, पनी अनिमेष-
चितवन की अचब्वल-वरुनियों, श्रपने भाव-मुग्ध हुदय के तन्मय रोश्यों से
चित्रित की । शहजाद दास का. श्य्रलवमः चिकार के चमत्कार की चकाचौध
दै । शिल्पकला कै ग्रनेक शतदल दिल्ली, लखनऊ, श्रागरा आदि शहरों में
द्मपनी सम्पूरतां तथा उकं में श्रमर और ग्रम्लान खढे ईह; ताजमहल में
मानो रिल्पकला दी गला कर दाल दी गई ।
देव, बिहारी, . केशव ्रादि कवियों के श्निन्य-पुष्पोद्यान श्री तक
अपनी श्रमन्द्-सौरम तथा नन्तं मधुसे रशि-सशि भरो को मग्ध कर रहे
हैं;--यहाँ कूल; केंलि, कछार, ऊुंखो में, सर्वत्र असुम-वसन्त शोमित है । बीचों
बीच बहती दुई नीली यमुना मे, उसकी फेनोञ्ज्वल चब्चल तस्ड्डों-सी, असंखय
सुकुमारियाँ श्याम के श्रतुराग मे द्धम रदी ई । वह्यं विजली छिपे-छिपे अ्रभिसार
करती, भौरि सन्देश पहुँचाते, चाँद चिनगारियाँ चरसाता है । वहाँ छद्दों ऋतुएँ
कल्पन के बहुर्टी-पट्टों में उड़कर, स्वर्ग की श्रप्सरा्यों की तरह; उस नन्दन-वन
के चासं शरोर श्रनवरत परिमा कर रदी र । उस “चन्दिकाधौतहरम्या वसतिर-
लका के त्रास-पास “प्रानन-द्मोप-उजास से नित ग्रति पूनौदी रहती टै)
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