इटली की कथाएं | Italy Ki Kathae
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
278
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)“ एव्वीवा गारीवाल्डी ! ” * मूरे पच्चड़ की सुरत में भीड़ के
वीच में से सरकते हुए बच्चों ने भी घोपणा की श्रौर जन -समूह ने
उनको घेर लिया।
होटलों की खिंडकियों तथा मकानों की छतों से सफ़ेद पंछियों
की तरह अनगिनत रूमाल फड़फड़ा रहे थे श्रौर नीचे की. भीड़
पर फूलों तथा उत्साहपूर्ण हमें -व्वनियों की वर्पा हो रही यी)
हर वस्तु प्रसन्न रूप वारण किये यी, हर चीज़ में जीवन का
संचार हुआ था, भूरे संगमरमर तक से तेजस्वी किरण - शलाकाएं
प्रस्फुटित होती हुई दिखाई दे रही थीं।
वायु - लहरी के कारण पताकाएं लहरा उटीं, हवा में टोपियाँ
फेंकी गईं तथा फूलों की वौछार की गई; वच्चों के नन्दे नन्दे निर
लोगों के सिरों के ऊपर दिखाई देने लगे; अभिवादन के हेतु फैलाये
गये नन्हे , मैले हाथों ने फूलों को पकड़ने की कोशिश की श्र प्रचंड
तथा श्रखंड घोपणाओं से गगन यूंज उठा:
“समाजवाद की जय!
“इटली की जय! “
लगभग सभी वच्चो को लोगों ने उठा लिया। कुट वच्चे बड़ों
के कंबों पर सवार हुए तो कुछ को कठोर मुखाकृति झ्रौर मूंछोंवाले
श्रादम्यिं ने अपने चौड़े सीनों से चिपका लिया। शोर तथा हंसी के
कोलाहल में वाद्य -संगीत दव -सा गया ।
वाक़ी वाल -अतिथियों को लेने के लिये स्त्रियाँ भीड़ में आती -
जाती रहीं श्रौर एक दूसरी से चिल्ला -चिल्लाकर पुछती रहीं :
“तुम दो लोगी न, शझनीता? ”
* गारीवाह्डी की जय! - संपा ०
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