श्री विष्णु सहस्त्रनाम | Shri Vishnu Sahastranam
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
290
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)झशाइरमाष्य
१३
प्राणिनां कौतयः यच्चापि खरक्त्या-
नुपरवेेन वधंयतोति तम् लोकैरना-
ध्यत ॒लोकानुषतापयते शास्त
लोकानामीषटट इति बा लोकनाथः तम,
मइदू जद्म-विश्वोत्कर्षण वत॑मान-
स्वात्-महद् मूलं परमार्थसत्यम् सब-
भूतानां भवः मंसारो यत्सकादा
दुद्धवतीनि सर्वभूतभवेद्रवः ठम ।७॥
' प्राणियोंकी कीर्ति यानी यशकों उनमें
अपनी शक्तिसे प्रविष्ट होकर बदति दहै,
जो लोकनाथ अर्थात् कोकोंसे ग्रार्थित
अथवा लोकोंको अनुतप्त या शासित
करनेवाटे अथा उनपर प्रभुत्व रखने-
वाले है, जो अपने समस्त उत्कर्पसे
वर्तमान होनेके कारण महद् अर्थात्
ब्रह्म तया महदृमूत यानी परमार्थं सत्य `
हैं ओर जिनकी सनिधिमात्रसे समस्त
भूतोका उत्पत्ति-स्थान संसार उत्पन
होता है, इसलिये जो समस्त भूलकर
उद्धवस्थान हैं उन परमेंश्वरका [स्तब्न
करनेस मनुष्य सब दु'खोंसे छूट जाता
ह ] ॥ज]
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पञ्चमं प्रघ्नं परिदर्ति- अच पांचरें प्रश्नका उत्तर दें हैं-
एप में सबधर्माणां धर्मो;घिकतमों मतः ।
यद्भक्त्या पुष्डरीकाक्ष॑ स्तवेरचेंज्नरः सदा ॥८॥
म द: अ 2
एषः) मे, सत्रधमाणाम्) धमः) अधिकतम, मतः ।
यत्, भक्रथा, पुण्डरीकाक्षम, स्तवैः, अर्चेत्, नरः, सदा ॥
सर्वेपां चोदनालक्षणानां धर्माणामेप सम्पूर्ण वि्रिरूप धर्मेमिं मैं आगे
वक्ष्यमाणो धरमोऽभिकतम इति मे मम॒ तरतठाये जानेवाले इसी धर्मकों सत्रसे
अमित्र ~ वड़ा मानता हूँ कि मनुष्य श्री-
मतः तः) यद्भक्त्या तात्पयण : हा मा हु क यु
पि ' पुण्डरीकाक्षका अर्थात् अपने हृदय-
पण्डरीकाशनं हृदयपुण्डरीके प्रकाश्- कम्मे विराजमान भगवान् वा्ुदेवका
मानं वामुदवं स्तवेमुंणसकीतेन- ' मक्तिपूर्वक-ततपरतासदित गुणसंक्रीर्तन-
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