नेपाल की वो बेटी | Napal Ki Vo Beti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
26 MB
कुल पष्ठ :
361
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( द )
उसका परमोदात्त गुण शरणागत-वत्सलता । जिद का बाप रणजीतसिंह की सेना
में साघारण घुड़सवार था । उसके रूप पर हुमा कर ही रणजीत ने दजंनो
रानियो श्र रखेलो के होते हुए भी ५० वर्ष से ऊपर की उम्र मे उससे विवाह
किया था । जिं्दों के भागने की घटना १८५० के लगभग की है । जगबहादुर
उस समय बूटा न था} वह १८७६ में मरा, उस घटना के समय लगभग ४.०
वर्ष का रहा होगा । सो रानी को आ्राश्रय देने का कारण जंगबहादुर की रूप-
लोलुपता और कामुकता भी हो सकती है । उसने रानी को रखेल बना कर
रक्वा था, यह प्रसिद्धि काठमाह् मे श्रजमीदहै। 'निपाल की वो बेटी'
मे बीच बीच मे जर्हो कदी जंगबहादुर और अन्य राणा प्रधानमन्तियो का
उल्लेख हुश्रा दे वहाँ उनका जो चित्र पाठको की झ्रॉखो के झ्ागे आता है
वह प्रेमचन्द के अकित चिन्न से बिलङुल भिन्न है, परन्तु है बह पूर्णतया
इतिहास-सम्मत, उसमे जरा मी श्रस्वाभाविकता नशी है, यही दिखाने के लिए.
नेपाल का गत दो शताब्दी का इतिहास ऊपर दिया गया है ।
नेपाल की वो बेटीः के कथानक का काल है सन् १६२०-२३ ई०--
चंद्रशमशेर के कटोरतम शासन का काल-नेपाल के घोरतम पतन क्रा
काश । जहां उसमे महेद्र हमाल, राजा हरिबहादुर शाह श्रौर मुखिया जय-
शकर पत जसे श्रत्यन्त पतित श्रौर नीच पात्र पाये जाते हैं वहीं हरिशकर
और रूपबहादुर जैसे उदात्तचरितर भी । हरिशकर का चरित्र स्वाभिमानी वीर
युवक का चरित्र है जो परिस्थितियों से समभकोता करना नहीं जानता, जूना
जानता है; जो टूट जाता है, पर मुडता नही, जो श्रागा पीछा सोचे बिना
न पर मिटना जानता है ; जिसके लिए वर्तमान की सत्ता है, भविष्य की
नहीं है । वह किसी भी अन्याय के सामने झुके बिना उसका प्रतिरोध करता
है, फलाफल की चिन्ता नदी करता, वह गजारूठ बंदृूकधारी राजा का मुकाबला
पैदल कुल्दाड़े से करता है, श्रोर मदं की मौत मरता है |
उपन्यास के सभी मुख्य नारी चरित्र-देमा, कुसुमा, पार्वती श्रौर
जयशंकर की माइली पत्नी अबला होते हुए भी सबला है । कदाचित् हिदी-
माषीं चत्र के पाठकों को यह कुछ श्रखरे, अरस्वाभाविक लगे । परन्तु नेपाल
की महिलाओं के लिए यह नितान्त स्वाभाविक है। गोरखा युग में बराबर
User Reviews
No Reviews | Add Yours...