भूषण - विमर्श | Bhushan Vimarsh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १५ ) न कि भटई करके पैसा कमाना । दीक्षित जी ने मूषण के राष्ट्रीय पर्यटन तथा सम्मान करने वालों का मी वर्णन किया है और उसकीरें पुष्टि मं भूषण के उपयुक्त छंदो का अवतरण देकर उनकी झालोचना भी की है। भूषण ने छत्रपति शाहू, छत्रसाल, ओर सवाई जयसिह की प्रशंसा विशेष रूप से की है । छुठवे अध्याय से दीक्षित जी ने भूषण की. भाषा, सटी, कविलख- रस, अलंकार, उदात्त भावना, विवेकपूर्ण विद्वार; मोलिकता मादि पर अपने विचार प्रकट किये हैं । सूपण पर किये गये कुछ आक्षेपों का-जैसे भिल्लुक इत्ति, अदलीलता, जाति तथा धर्म द्वेप, अनैति- हासिकता, भयेती आदि--मी निराकरण किया गया है | भापका कइना है कि “लोगो ने भूपण के विचारो क) ठीक ठीक नदी समझा इसीलिए, वे मूप्रण कौ कविता पर श्राक्षेप कर बैठते है? ( प्र २७१ ) क्षिप ही नदीं वरन्‌ उनकी स्वना से काल्पनिक श्राक्षेप वाले छन्दौ का निकाल देने का भान्दोलन भी एक बार हो चुका है| उपयुक्त सक्षिप्त सं केतों से यह स्पष्ट है कि दोक्षित जी ने भूषण तथा उनकी रचनाओं की व्यापक श्रौर सांगोपांग झ्ाठोचना करने का प्रयास शिया है | यद्यपि उनके कुक विचारों से अन्य विद्वान सहमत न हो सकेंगे । तथापि पक्षपात रद्ति पाठक वह्‌ मानने से मकोच न करेगे कि दीक्षित जी ने अनेक भ्रमात्सक विचारों तथा भूषण संबंधी शंकाओं के खमाघान करने का सराहनीय भर बहुत कुछ सफल प्रयरन किया हे । भूषण की कविताओं के संग्रह मे जो छन्द मिलते हैं वे सभी भूषण केहदी रचे हुए हैं या उनके नाम से रे हुए अन्य कवियों के भी छन्द कि




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