हिन्दी काव्य पर आंग्ल प्रभाव | Hindi Kavya Pr Angl Prabhav
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
24 MB
कुल पष्ठ :
306
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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पुस्तक 'श्रांग्ल साहित्य का उदू साहित्य पर प्रभावः ( 16 {010९066
0 छाणछापंडा। उिएहा'करप्पा'ह 00. ए१वण उनधला'89पा७ ) में किया
है। यह कायं मूलतः एक निबन्ध रूप मे था जो सन् १६२४ मे लन्दन विश्व-
विद्या्लय द्वारा पी० एच० डौ° की उपाधिके लिएस्वीकृत हुश्रा था । उस
ग्रंथ के प्रकाशन के उपरांत बंगला साहित्य पर पाश्चात्य प्रभाव संवेधी विष्य
पर श्रनेक ग्रंथ प्रकाशित किये गए । इस विशेष क्षेत्र मे प्रियारंजन सेन
का काये प्रशंतनीय है | उनके निबंध “बंगला साहित्य पर पाश्चात्य प्रभावः
( (४९8४९ {प्प 10 एल्णद्ठभां पतं061'80पा'€) तथा “बंगला
नाहित्य का पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव में उत्थान श्रौर विकास” (@0रध
31104 1269610107060४ ग 3िढण्क िफला'कपाए6 पाठ8ा'
॥06 1010९०८९ ° एएल्डला (प19ए76 ) क्रमश: सन् १६२४ मैं
प्रेमचन्द रायचन्द छात्रबत्ति तथा सन् १४.२६ मे शुबिली रिघन्चं पारितोप्रिक के
लिये स्वीकृत करिए गए । थे दोनों निबंध सन् १६३२ में कलकत्ता विश्वविद्या-
लय से बंगला साहित्य में पाश्चात्य प्रभाव! ( प्लत [11९6९
770 3616811 [पला क्पा6) के नाम से सम्मिलित सरूप से प्रकारित्त हुए ।
वंगल। उपन्यास पर पाश्चात्य प्रभाव के चिपय पर इन्हीं विद्वान लेखक का एक
पृथक् लेख “जर्नल श्राफ डिपार्ट मैंट श्राफ लेट्रस,* वाल्यूम २२, कलकत्ता विश्व-
विद्यालय में प्रकाशित हुश्रा । फिर बंगला काव्य पर पाश्चात्यं प्रभाव के
सम्बन्ध मे एच० एम० दास गप्ता का मंथ श्टूडीज इन वेस्टन इन्फलुएंस श्रान
नाइनटीन्थ सेन्चुरी बंगाली पोइट्री' सन् १६३४ में कलकत्त से प्रकाशित
श्रा | इसके श्रतिरिक्त इस विपय पर श्रौर भी महत्वपूर्ण लेख “बुलेटिन श्राफ
स्कूल श्राफ श्रोरियन्टल स्टीज़, ज्लन्दनः तथा “केलकटा रिव्यू” में समय-समय
पर प्रकाशित हो
इम दिशा मय्यपि बंगना साहित्य पर श्रच्छा कार्य हुश्रा किन्तु हिन्दी
साहित्य पर कुछ समय तक संतोषजनक कायं न हो सका | हिन्दी साहित्य पर
पाश्चात्य प्रभाव के विपय पर सर्वप्रथम काथं श्रमी हाल में डा० विश्वनाथ
प्रसाद सिश्र ने प्रयाग विश्वविद्यालय द्वारा डी० फिल० उपाधि के लिये स्वीकृत
श्रपने श्रप्रकाशित सिबंध ' हिन्दी सा दिव्य श्रौर भाषा पर श्रांग्त प्रभाव (१८७०
१४ २०) * ( 11811 [01176066 ० सिफिषता 1.8.06 820
पत८७ा80ए76 ) में किया । इसके उपरान्त डा० धर्म किशोर लाल का
श्रप्रकाशित निबंध “हिन्दी नाटक पर पाश्चात्य नाटक का प्रभावः ( 106
प्रा 06 06 छि०ड08ा ा 18018 09 141 {78.008 ) प्रयाग
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