महाकवि दौलतराम कसलीवाल व्यक्तित्व एवं कृतित्व | Mahakavi Daulatram Kasaliwal Vyaktittv evm Krititv

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तावना हिन्दी के विकास मे राजस्थानी जनता एव यहा के कवियों का विशेष योगदान रहा है । १०वी शताध्दि के पहले से ही श्रपश्र श श्रौर फिर राज- स्थानी भापा के माध्यम से हिन्दी की जितनी सेवा यहा के निवासियों एव विद्वानों ने की थी, वह्‌ इतिहास के स्वशिम पृष्ठो में श्र कित रहेगी । अपभ्र श भाषा के वहुर्चाचत कवि घनपाल राजस्थानी विद्वान थे । जिनकी “भविसयत्त कहा” कथा साहित्य की वेजोड कृति है। इसी तरह “घम्मपरिक्खा' के रचयिता हरिपेण' राजस्थानी महाकवि थे । जिन्होने मेवाड देश को जन सकुल लिखा है । लघु कथाश्रो को धार्मिक पुट देकर जनप्रिय बनाने में इन कवियों का. महत्वपूर्ण योगदान रहा है । इसी तरह श्राचार्य हरिभद्रसुरि चित्तौड के थे, जिन्होने प्राकृत एव श्रपण मे कितनी ही कृतियो को प्रस्तुत करके हिन्दी के विकास का मार्ग प्रशस्त किया था । हिन्दौ की जननी अ्रपश्चश राजस्थान की भ्रत्यधिक लोकप्रिय भापा रही थीश्रोर यही कारण हैकि इस भाषा की श्रधिकाग पाण्डूलिपिया राजस्थान के जेन ग्रन्थ भण्डारोमे ग्राज भी सुरक्षित है । भ्रवतक श्रपश्न श की छोटी वडी ५०० कृतिया उपनन्यदहौ चुकी हूँ । जिनमें अधिकाश राजस्थान के शास्त्र-भण्डारो मे सग्रहीत है । जव जनता सम्कृत एव प्राकृत से ऊव चुकी की , तब उसने श्रपभ्रश का सहारा लिया श्रौर उसी का झ्रागे चलकर हिन्दी के रूप में विकास हुआ । सवत्‌ १३५४मे रचित जिरुदत्त चरित' इसका स्पष्ट उदाहरण है । यह काव्य श्रपश्न श एव हिन्दी के बीच की कडी का काव्य है । भ्रपश्र श ने धीरे-धीरे हिन्दी का स्थान किस प्रकार लिया, वह प्रपभ्रश के उत्तरकालीन काव्यों से जाना जा सकता हूैं। इसी तरह सघारु कवि रचित प्रद्यूम्न चरित (स० १४११) का नाम भी लिया जा सकता है । इन काव्यो मे हिन्दी के ठठ (तदभव) शब्दो का प्रयोग भाषा विकास की हष्टि से उल्लेखनीय है । हिन्दी का प्रादिकालिक इतिहास राजस्थान के कवियो का इतिहास है । वह यहा की जनता की मापा करा इतिहास है । रासो काल के नाम से जो काल? निर्देश किया जाता है, वह सब राजस्थानी कवियों की ही रचनाश्रो के कारण है। रासो साहित्य यहा के श्रादिकालिक कवियो का प्रघान साहित्य है । यद्यपि जनप्रिय कवियो ने काव्य की श्न्य शैलियों में भी खूब लिखा है, लेकिन




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