ज्वालामुखी | Jwalamukhi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
313
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उवालामुखी
श्रायु से पाल-पोस कर बड़ा किया है, जब कि उसके पिता का
देहान्त हो चुका था, उसे यह श्राजादी देने में अवश्य ही श्राना-
कानी करेंगे । वे शायद जबरदस्ती भी करें -मैजिस्ट्रेट जो ठहरे !
उस ज्ञबरद्रती का मुकाबला करते-करते झगर शादी कर सकना
सम्भव न हुआ तो वह श्राजीवन श्रविवाहित ही रहेगी । किन्तु
बह श्रपने श्राराध्य के प्रति विश्वासषात हरगिज् नहीं करेगी ।
लेकिन मैजिस्ट्रेट साहब ने इतनी दुरी तक जिद नहीं की ।
चार-छुः बार कहा, दो-एक बार होनहार नौकरी-प्राप्त युवकों को
श्रपने घर चाय पर बुला कर उसके सामने पेश किया, लेकिन
विजया भै उनकी तरफ श्रौल उठा कर भी नहीं देखा । मैजिस्ट्रेट
साहब ने कहा, जाने दो, मरने दो, उसकी किस्मत में जो लिखा
है, वही होगा । शादी हो जाने के बाद श्रपनी जिम्मेदारी तो
क्रम होगी |
झमयकुमार उन्हें एकदम नापसन्द हो, ऐसी बात न थी |
वह बड़ा स्वस्थ, सुन्दर, गौरवण युवक था, जिसकी सात्विक स्मित
किसी के भी मन को मोद लेने की शक्ति रखती थी । साना कि
उसकी मँ गरीब है लेकिन इतना पदृ-लिख लेने के बाद वह
अपना श्रौर श्रपनी पत्नी तथा माँ का पेट तो चला ही लेगा |
लेकिन उनकी नजरों में श्रभव का सबसे बड़ा दोष यहीं था कि
वह एक्जिक्यूटिन्ड डिपार्टमेंट में किली श्रोददे पर नहीं था |
श्रोर दुसरा यह कि वद्द खद्दर पढ़नता था ।
. फिर भी झन्त में उन्होंने मन के खिलाफ़ ही सही; विजया
और श्रमय के विवाह की झनुमति दे दी |
श्र झाज वह विवाह सम्पन्न हो रहा है । विजया के सुख
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