हमारा संविधान | Hamara Samvidhan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संवैधानिक इतिहास किसी देश के संविधान के भवन का निर्माण सदैव उसके अतीत की नीव पर किया जातां है । अत. किसी भी विद्यमान तथा लागू संविधान को समझने के लिए उसकी पृष्ठभूमि तथा उसके इतिहास को जानना जरूरी होता है। प्राचीन भारत में संवैधानिक शासन-प्रणाली लोकतत्र, प्रतिनिधि-सस्थान, शासकों की स्वेच्छाचारी शक्तियों पर अंकुश और विधि के शासन की सकल्पनाए प्राचीन भारत के लिए पराई नहीं थीं । धर्म की सर्वोच्चता की सकल्पना विधि के शासनः या नियंत्रित सरकार की सकल्पना से भिन्न नहीं थी । प्राचीन भारत में शासक धर्मः से वंधे हए थे , कोई भी व्यविति धर्म का उल्लधन नहीं कर सकता धा । एसे पर्याप्त प्रमाण सामने आए टै, जिनसे पता चलता हे कि प्राचीन भारत के अनेक भागो पे गणतत्र शासन-प्रणाती, प्रतिनिधि-विचारण-मंडल ओर स्थानीय स्वशासी संस्थाएं विद्यमान थीं ओर वैदिक काल (3000-1000 ई.पू. के आसपास) ते ही लोकतात्रिक चितन तथा व्यवहार लोगों के जीवन के विभिन्‍न पहलुओं में घर कर गए थे। ऋग्वेद तथा अथर्ववेद मे सभा (आम सभा) तधा समिति (वयोवृद्धों की सभा) का उल्लेषठ मिलता है । एतरेय ब्राह्मण, पाणिनी की अष्टाध्यायी, कौटिल्य का अर्थशास्त्र, महाभारत, अशोक स्तंभं पर उत्कीर्ण शिलालेख, उस काल के बौद्ध तथा जैन ग्रंथ ओर मनुस्मृति-ये सभी इस बात के साक्ष्य है कि भारतीय इतिहास के वैदिकोत्तर काल में अनेक सक्रिय गणतंत्र विद्यमान थे । विशेष रूप से महाभारत के बाद, विशाल साप्राज्यों के स्थान पर अनेक छोटे छोटे गणतंत्र-राज्य अस्तित्व में आ गए । जातकों में इस प्रकार के अनेक उल्लेख मिलते है कि ये गणतंत्र किस तरह कार्य करते थे । सदस्यगण 'संधागार' मे समवेत होते थे । प्रतिनिधियों का चुनाव खुली सभा में किया जाता था । वे अपने गोप का चयन 1. विधि क शासन (९२५€ 9 {2५} 2. निर्यत्रित सरकार (1501१8१ (0श््यापा ध)




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