शब्दों का सौदागर | Shabdon Ka Saudagar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
162
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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आइझाजी
रोहित
रजना
रोहित
औओझाजी
रोहित
आघ्लाजी
रोहित
रंजना
औओझाजी
रंजना
आओशझाजी
रजन
आओझाजी
रजन
ओझाजी
इसे अपनी रोटी सेकनी थी 1 लेकिन यहा आया तो चूल्हे पर तवा चठा
हुआ ही नजर नहीं आया 1
(अच्दर आता हुआ) पापा . मपु कीं वैदम त्रस मालती आई है। उसे
मकान चाहिए । अपने ऊपर याला फ्लेट उसे हीं दे देते है।
फहा है मैडम ?
नुक्फड याली नीलिमा आदीं सै वाते करने बीच मे ठहर गई । वस , आने
वाली है।
उसे इतने बड़े फलेट की क्या जरूरत है ? फिर , वह अकेली है , क्या
इतना किराया दे सकेगी ?
ओह पापा ! अपने को तो अच्छा किरायेदार चाहिए । उस अकेली के
लिए किराया कुछ कम कर देंगे 1
नहीं बेटे । फिराया किसी मकान का कभी कम नहीं किया जाता ,
मत्कि हमेशा स्प्या टी जाता रै। मकान कीं प्रतिष्ठा वनाये रसने के
लिए यह बहुत जरूरी है।
हो सकता है वह पाछित किराया भी दे दें ! मगर पापा , मकान हमें उसी
को देना है। यह यहुव अच्छी है। दो वर्ष पहले मेरे साथ ही कॉलेज में पढ़ती
शी । मै उससे भली भाति परिपिते ह्। अभीं बुला कर लाता हूं उसे।
(कहकर रती से बाहर निकल जाता रै)
ना - ना । मैं उस कूवारी मास्टरी को तो फ्लेट हरगिज नही दूरी ।
और न ही , किसी कुवारे बायू, की 1
सीपी सी बात है। हम फैमिली याले को ही फ्लेट देंगे और किसी को
नहीं 1 क्यों ठीक है नर?
बिल्कुल सही बात है।
(बाहर से कीई आवाज देता है-बाबू. रामदयालजी ओझा
का मकान यहीं है 7)
(ऊची आवाज मे) हा जीं , यहीं है। अन्दर आ जाइये।
आप जो कह रहे थे , सही है। आने वालों की अब कंतार लग जायैगी।
यौ तो लगनीं रै!
लेकिन कोई अच्छा हो , तब न !
देखते है , लककीं कौन निकलता है?
11 टाद्दो का सौदागर
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