आज के चार नाटक | Aaj Ke Chaar Naatak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
105
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कृमला :
राकेश :
कमला :
राकेश
कमला <
राकैश :
कंमजा :
राकेश
कमला :
महेश :
धोबी :
कमला :
धोबी :
महेश :
राकेश :
धोबी
राकेश
25
(पानी फे गिलास मेज पर रखती हुई) उसी की बातें सुन-सुनकर
बड़े पापा न जाने, मन में, कसे-कसे सपने संजोने लगे हैं। यह सोंच-
सोचकर दुबले हुए जा रहे हैं कि नन्दू के घर पर मन बहलाने को
टी० ची० है, हमारे यहा क््यीं नही ?
यह तो कोई बात नही हुई ।
अब तुम्ही बताओ, तुम्हारे भाईसाहव की जैव ऐसी तो है नही कि
हर समय भरी रहे । टेलीविजन के लिए क्या हमारा मन नही
करता !
: क्यों नहीं ?
पर करें क्या ? कहा से लाए पैसा ? इतने बडे घर में क्या कुछ नही
चाहिए ?
मैं समझता हू भाभी ।
फिर भी बडे पापा के लिए हम किसी चीज की कमी नहीं रखते ।
: कमी रखने की वात ही क्या है ?
कमला :
महेश :
कमला :
अच्छे से अच्छा खाना'*' बढ़िया से वढिया कपड़ा***।
“*'मैले कपड़े तो तेरी भाभी को वैसे भी पसन्द नही हैं।
और न ही, बडे पापा पहनते हैं ।
[वाहर से आवाज आती है --बीबीजी/”]
धघोषी आ गया ।
भीतर आ जा ।
[धोबी कपड़ों की गठरी लिये आता है|
बीवीजी, कपडे ले लीजिए |
[कहता हुआ फर्श पर वैठकर गठरी खोलता है]
(महेश से) आप जरा इससे नो कपड़े ते लीजिए, ग्रिवकर । तब तक मैं
अन्दर से पैसे लेकर आती हूं ।
[प्रस्थान]
(कपड़े छांटकर देता हुआ) ये लो बाबूजी । पुरे नौ हैं। अच्छी तरह
गिन लेवें ।
(लापरवाही से) ठीक है **ठीक है ।
[कपड़े उठाकर अन्दर ले जाता है]
(धोबी से दबी आवाज में) अरे सुन, कभी हमारे बड़े पापा के कपड़े
भी धोने के लिए ले जाता है ?
: (सोचता हुआ) उन बड़े बावाजी के ?
भ्ह्ठा।
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