आज के चार नाटक | Aaj Ke Chaar Naatak

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Aaj Ke Chaar Naatak by निर्मोही व्यास - Nirmohi Vyas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कृमला : राकेश : कमला : राकेश कमला < राकैश : कंमजा : राकेश कमला : महेश : धोबी : कमला : धोबी : महेश : राकेश : धोबी राकेश 25 (पानी फे गिलास मेज पर रखती हुई) उसी की बातें सुन-सुनकर बड़े पापा न जाने, मन में, कसे-कसे सपने संजोने लगे हैं। यह सोंच- सोचकर दुबले हुए जा रहे हैं कि नन्दू के घर पर मन बहलाने को टी० ची० है, हमारे यहा क्‍्यीं नही ? यह तो कोई बात नही हुई । अब तुम्ही बताओ, तुम्हारे भाईसाहव की जैव ऐसी तो है नही कि हर समय भरी रहे । टेलीविजन के लिए क्या हमारा मन नही करता ! : क्यों नहीं ? पर करें क्या ? कहा से लाए पैसा ? इतने बडे घर में क्या कुछ नही चाहिए ? मैं समझता हू भाभी । फिर भी बडे पापा के लिए हम किसी चीज की कमी नहीं रखते । : कमी रखने की वात ही क्या है ? कमला : महेश : कमला : अच्छे से अच्छा खाना'*' बढ़िया से वढिया कपड़ा***। “*'मैले कपड़े तो तेरी भाभी को वैसे भी पसन्द नही हैं। और न ही, बडे पापा पहनते हैं । [वाहर से आवाज आती है --बीबीजी/”] धघोषी आ गया । भीतर आ जा । [धोबी कपड़ों की गठरी लिये आता है| बीवीजी, कपडे ले लीजिए | [कहता हुआ फर्श पर वैठकर गठरी खोलता है] (महेश से) आप जरा इससे नो कपड़े ते लीजिए, ग्रिवकर । तब तक मैं अन्दर से पैसे लेकर आती हूं । [प्रस्थान] (कपड़े छांटकर देता हुआ) ये लो बाबूजी । पुरे नौ हैं। अच्छी तरह गिन लेवें । (लापरवाही से) ठीक है **ठीक है । [कपड़े उठाकर अन्दर ले जाता है] (धोबी से दबी आवाज में) अरे सुन, कभी हमारे बड़े पापा के कपड़े भी धोने के लिए ले जाता है ? : (सोचता हुआ) उन बड़े बावाजी के ? भ्ह्ठा।




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