शब्दों का सौदागर | Shabdon Ka Saudagar

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Shabdon Ka Saudagar by निर्मोही व्यास - Nirmohi Vyas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1 आइझाजी रोहित रजना रोहित औओझाजी रोहित आघ्लाजी रोहित रंजना औओझाजी रंजना आओशझाजी रजन आओझाजी रजन ओझाजी इसे अपनी रोटी सेकनी थी 1 लेकिन यहा आया तो चूल्हे पर तवा चठा हुआ ही नजर नहीं आया 1 (अच्दर आता हुआ) पापा . मपु कीं वैदम त्रस मालती आई है। उसे मकान चाहिए । अपने ऊपर याला फ्लेट उसे हीं दे देते है। फहा है मैडम ? नुक्फड याली नीलिमा आदीं सै वाते करने बीच मे ठहर गई । वस , आने वाली है। उसे इतने बड़े फलेट की क्या जरूरत है ? फिर , वह अकेली है , क्या इतना किराया दे सकेगी ? ओह पापा ! अपने को तो अच्छा किरायेदार चाहिए । उस अकेली के लिए किराया कुछ कम कर देंगे 1 नहीं बेटे । फिराया किसी मकान का कभी कम नहीं किया जाता , मत्कि हमेशा स्प्या टी जाता रै। मकान कीं प्रतिष्ठा वनाये रसने के लिए यह बहुत जरूरी है। हो सकता है वह पाछित किराया भी दे दें ! मगर पापा , मकान हमें उसी को देना है। यह यहुव अच्छी है। दो वर्ष पहले मेरे साथ ही कॉलेज में पढ़ती शी । मै उससे भली भाति परिपिते ह्‌। अभीं बुला कर लाता हूं उसे। (कहकर रती से बाहर निकल जाता रै) ना - ना । मैं उस कूवारी मास्टरी को तो फ्लेट हरगिज नही दूरी । और न ही , किसी कुवारे बायू, की 1 सीपी सी बात है। हम फैमिली याले को ही फ्लेट देंगे और किसी को नहीं 1 क्यों ठीक है नर? बिल्कुल सही बात है। (बाहर से कीई आवाज देता है-बाबू. रामदयालजी ओझा का मकान यहीं है 7) (ऊची आवाज मे) हा जीं , यहीं है। अन्दर आ जाइये। आप जो कह रहे थे , सही है। आने वालों की अब कंतार लग जायैगी। यौ तो लगनीं रै! लेकिन कोई अच्छा हो , तब न ! देखते है , लककीं कौन निकलता है? 11 टाद्दो का सौदागर




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