श्रद्धा | Shraddha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
39 MB
कुल पष्ठ :
422
श्रेणी :
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No Information available about श्रद्धानन्द सन्यासी - Shraddhanand Sanyasi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अलरहि हि । (प्रयस्तिशत् त्रिराताः षट् सहसाः,
सन् देगन् चरः तप्ता पिति) सच--
चारी , त्पले पूणं करता हि।*
|
।
३३२२२५६२ २२- देशा को वह (ब्रह्म
।
|
देव क.न हैं | देवो दानाद्वा, दो पर्षा
श्च तनाः, यस्यानो प्रवटालिवा+ दून |
दुने से, प्रका-। करने से, उपदेश देने से
( दूसरे ४ अन्दर चांदना करने से ) थौर
सब प्रकाश की सिंपल कास्पान हे ने थे
देव कहाता है। पदिले दान देने बार, देख,
दूसरे प्रकाश करने वाले सुर्घादि मे थ, तीसरे
खपदेश में अन्दर चादना देने याखे माला
पित और अप्षाय देखे और थे थे प्रस्शा १! को
फ) श्री स्थिति का स्यान परनात्माप्र
मदेव है | देव समूहभे अग्नि रएथिर
भाय, जन्तरिल, आदिल्ण, दः, चन्दरूना
बोर नक्षत्र, आठ व्सु करवाते प्योकरि
सत्र पमः इन्हीं में मिधार करते हैं । दश
प्यार लर ११ वं जोवात्गा रस लिए
रद कहुवाति है क्याकि जय ये शरीर से
बनिफनते हैं तो मृत के सास्प्रन्धियों स्प
र मेह । संउल्वर क यारु मष्ीमे श-
दिव्य कद्धलाते हैं क्योकि ये आयु कफो
गोण करते दे जाते हें । ३१ थे भीर्
थ्यापक विद्यूत तथा यज्ञ खत्र निना कर
सतीस् देव.ख ह) णन्दो फा विस्तार
३३२. ओर ६३३२ क्ता है, ये
सयु देय समूह् सोर र देष, सप
व्रह्मषारी के पो नै हैं--अधात्
ह्रासे के स्यमादतः असुकूूल ये श-
किष ष्ौ मानी | उसे ममन पे
पक्िदः वादक नहु हः । मौर काधवं
॥
द् । 1 जस का वाय सुर् क्षत
प्ये को तेन्रमय अग्नि को
मन्द् कर देला है, जिसका शरीर लप
खे णड मघं वड मणमूत्रके अजुशिलल्याग
से एथिधी को गन्दा कर देल 8, भस
कामम बभा सष वहुवायु मीर अन्त-
रक्षि को निल करने को चेछ्ा करता दे
अर को भवविया का दास है दस से श्टे
प वादन सय प्रकाशमाज परश द्म
मनद कर एसे हैं ।
अदरचारी से रद पीड़ित 'और 'भआई-
त्य दुरो रहते ‰' किन अर यन्नडम
को जान को रते ई । परन्तु रन बारी
पने सप से इन सच को लुरोजिस करता
है | लहर चारी का क्रियात्मक उपदेश इन
सप्र वांफो शान्त करके भरपूर कर देता
ह्ै। दिन रात उलदे चलसे के स्यान में
खं।ये चने लागते | त्रर्सचारी का जी लन
जगत को क्या पलट देता है । जान
गंघप्ठी तो और भी महापुष्छ करते थे
परन्तु बुद्देव ने क्यों याभनाण के घोर
र्णदुखः को दिस भिन्न करके चिरस्थाई
प्रभाव संधार पर कोडा | शसा ने कधं
मसी षी पद्य पार भौर उस के उपदेश
ने क्यों सदियां सक करोड़ फौ शान्ति
का पाठ पढ़ाया । परण्लु इन सवसं वदु
फर प्रधोन काल मे रामचन्द्र सश्रा भोता
के षोटनने क्यो रेषा खश्च पद् श्त
किया कि उन के जोवम को कथा के पाठ
मात्र से अब तक स्त्री पुरुष पच्न्नर श्ोवन
लाभ करते हैं? भीर इस समय श्चि
र्कं कयां
व कर् भर्त
ही रै षे
आभित्य)३ म्
` सन्यासी
यता
मनुष्यों को
भता सफ रे
दए । श्रद्ध ब
की सेवामें हो
भगिम सूर्प
परन्तु जिन्डोने
न» ० रा पडला अकमसांगा पा उन
| को भी वी. पो, कर दिए गए थे । उन
बेल्युप्रेजन द्वारा भेने हुए पत्रों में से कुछ
इसकारी हाकर लौट आाए' हैं । काडूस
यह प्रतीत होता है फि कद मनुष्य ऐसे
भी हिं जो भखप्रार बालो' से खडे खाने
करने फे लिद्ृहीयी.पी.की अछा लिख
भेग्ते हैं । ऐसे ठटोल विन्डे दिनो को
विदेष ग्रति चचक ए श्री स्प्यो
च्रुस्न्् गी कोभगसाःजुस(र, निश्चप र
र्या गया क्रि आगे के लिए एक से
सा दः मास के रिए भगाज सुर्य पमु
न्ने पर् नप् याद के लात सदा?
का प्रयास हुआ करे, यो, पी. द्वार मक
। फिसी: कर की से भेज जाय है
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श्रा के निष
भरत् वषं के दिए
पक वय फ रें॥
६ सास को २}
दू मास में फम के लिए सेंभते का
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भारत चघिसिस देवों से
द घष ले लिए ५)
विज्ञापन कोई थी गड्ों दिपा जायपगा !
केबल गुरुसुख विषवधिद्यालय कांयडी लो
पकार पुस्तकों का कोशपत्र अधिक से
अधिक घप में तीन वार दिया जावकेगा ।
प्रदन्धकर्ता श्रद्धा
` 7.0. शृरक्ल कांगडी
( जिला विभगीर )
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