ब्रह्म्चर्य्य - सन्देश | Brahmcharya - Sandesh

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Brahmcharya - Sandesh by श्रद्धानन्द सन्यासी - Shraddhanand Sanyasi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ब्रह्मचर्यसेस्देश कक -जम्टदिट १९९ रह पथुना चब्साय क्या यह विपय गोपनीय है ? ट्ः एक गन्द॒ वातावरण में सौंस ले रहे हैं । हरेक श्वास के साथ न जाने कितने गन्दे विचार हमारे दिमाग में जा पहुँचते हैंश्रीर न जाने कितने ही श्रोर भीतर प्रविप्ट होने की तैयारी करने लगते हैं । नन्हे-नन्हे बालकों का मस्तिष्क तया हृदय कोमल कॉपलों के फूटने श्रोर सुरभित कु्तमों के खिलने से उललसित होने वाले नवयोवन में ही दुर्गन्धयुक्त कीचड़ से भर जाता है । श्राठ था दस वर्ष के वालक के चेहरे को देखने से कुछ पता नहीं चलता परन्तु उस के बन्द हृदय-कपाट को खोल कर देखा जाय तो श्रन्दर एक भट्टी धघकती नज़र श्राती हैं जिस की लपटों से-- जो थोड़ी ही देर में प्रचरड रूप धारण कर सेंगी--वह बालक मुलसन वाला होता है । वह नहीं चाहता कि उस के भीतर माँका जाय । इस का विचार ही उसे कंपा देता है नख से शिख तक हिला देता है । वह जानता है उस के भीतर कीचड की




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