नेहरू जी की वाणी | Neharu Ji Ki Vani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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के साम्राज्यवाद को चुनौती # मौ मी मौ 707 कक स > = 9 0 लिखाफ महान्‌ उत्तरदायित्व पूणे पद्‌ पर मुभे बिठा दिया । क्या इस स्थितिमे पहुंचनेके षयि मेँ छृनज्ञता भ्रगट कह' १ आप वहुतसे महंत्वपू्ण राष्ट्रीय विपयोंपर विचार विसश करेगे जो इस समय आपके सामने उपस्थित हैं, और आपके निर्णय भारतीय इठिहास की धारा बदल दे सकते हैं, ठेकिन स्मरण रखिये, आाप ही अकेले , नहीं हैं जिनके सामने समस्याए' उपस्थित हैं, तमास दुनिया हो आज एक महान्‌ प्रश्न बना हुआ है, हर देश और हर देशवासीके सामने समस्याएं हैं । विश्वासका युग जिसमें आराम और स्थायित्व रहता है-बीत चुका और हर विषयमें सवा पैदा हो गया है; हमारे पुरुपोंको वह चाहे जितना सनातन और पत्रित्र छगता रहा हो । हर जगह सन्देह ओर वेचैनी है थौर राज्य तथां समाजकी जडे दिर गयीं ह । स्वाधीना, न्याय, सम्पत्ति तथा परिवार सम्बन्धी पूर्वं प्रतिष्ठित विचासोपर आक्रमण हो रहा दै घौर परिणाम अधर्मे कटक रहा है । हम प्राचीन इतिहासके अन्त.काख्मे है जबकि सारा संसारदी संक्रार्तिकार्मै जो किं एक नये आडेरको जन्म देना ह । यह कोई नहीं कह सकता कि भविष्यमे क्या होगा, लेकिन दस विश्वास पूरक कह सक्ते है कि एशिया शौर भारत भी संसार की भावीनीतिसें निर्णायक पार्ट अदा करेगा । युरोपियन आधि- पके दिनका अवसान हो रहा द , अव युरोष संसारकी गतिविधि शौर दिल चस्पीका केन्द्र नदीं रह गया। सविष्य एशिया और समेरिकाके हाथमें है। भूठे और अपूर्ण इतिहास्रके कारण बहुतसे




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