सागर की लहरों पर | Sagar Ki Laharo Par
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
66 MB
कुल पष्ठ :
257
श्रेणी :
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No Information available about लक्ष्मीचन्द्र जैन - Laxmichandra jain
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१२ ...... सागरकी लहरोंपर
हालत सँभल जायगी । यही बात सही निकली और अब में डंकपर लम्बा
होकर खड़ा हो लेता हूँ, दौड़कर “'डेक गोल्फ़' खेलता हूं । पर ऐसा भी
नहीं कि तबीयत बिलकुल ठीक हो गई हो ओर अब मतली न आती हो
पिछले दो दिनोंमें गुज़री हुई दुनिया, बिगड़ी-बसी सभी, आँखोंके
सामने उठती-विलीन होती रही । बीमारीकी चुप्पी बीती बातोको
चित्रपटकी भाँति आँखोंके सामने मूर्तिमान् कर देती है । मेरा सारा पिछला
जीवन साकार जैसे सजीव हो, लौट पड़ा । बचपन, गाँवका जीवन--जिला
बलियाके ऊँजियारका, अनेक बार ओआंँखोके सामने उठ आया) भरपुरा
परिवार, पण्डित कुटुम्ब, सुन्दर गौर वृद्धा चचेरी तीरनज॒र दादीकी
सख्तीके बीच माँ का शान्त धीर जीवन ओर उसकी छायाम मेर बारपन
कलका बीता-सा सहसा झलक आया । फिर बलियाका, जब पिता वकालत
करने लगे थे और हम सब वहाँ चले गये थे। सन् सोलहकी भयानक
बाढ़की कुछ वैसी ही धूँघली याद हो आई जैसी तबकी “जर्मनीकी
लड़ाई' की ।
और जीवन बढ़ चला था । सातवींमें पढ़ता था पर मन कुछ बहुका-
बहुका-सा लगा भर आख़िर एक दिन बहक ही तो गया, जब एक सम-
वयस्क मित्रके साथ गंगा पारकर पैदल चल डुमराँव पहुँचा और मित्र द्वारा
चराये रुपयोंसे टिकट खरीद दोनों कलकते जा उतरे। परन्तु वहाँ टिका
नहीं, लौट पड़ा । और फिर स्कूछका जीवन' पूर्ववत चल पड़ा । आठवीं
में पहुँचा । '
` सन् इक्कीसका आजादीका आन्दोलन ज़ोरोपर था--बाईसमें स्कूल
छोड़ दिया । जेल गया । दो बार । पहरी बार एक महीने बाद छूठ गया,
दूसरी बार सालभर रहना पड़ा । हिन्दुस्तानका सबसे छोटा क्रंदी था,
शायद बारह बरसका । छटा, काडी विद्यापीठ गया । पर बहाँकी' पढ़ाईका
आडंबर मझे अखर गया, मैं फिर बलिया लौटा भौर फिर काशी-विश्व.
विद्यालय, इलाहाबाद और लखनऊ ।
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