कांग्रेस का इतिहास | Kangres Ka Itihas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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* १० ` तारा बन गया है, और संसार की दिलचस्पी का केन्द्र दो गया है । जिस प्रकार भूमणइक के उस गोल्ाव में अमेरिका दे, उसी सरद इस गोला में यह श्रटलॉटिक श्रौर प्रशांत महासागर का! सन्धि-स्थल है । कन्याकुमारो जाश्र श्राप पवित्र 'केप' के छोर पर खड़े दोकर समुद्र की श्रोर मुद्द कीजिए । आपके दाहिने हाथ अरब सागर होगा जो @ष श्राव गुडद्दोप' (अर्थात्‌ अफ्रीका के दक्षिण छोर पर स्थित आशा श्रंतरोप) पर जाकर झटल्षांटिक महासागर से मिद्नता है, श्वोर श्रापके शय दाधथ की श्रोर बंगाल की खाढ़ी दोगी, जो प्रशांत मद्दासागर से जा मिक्षनी है । इस तरद हिन्दुस्तान पूर्व श्रोर परिचम के मिजने का स्थान है, प्रशांत-स्थित राष्ट की श्वाजादी की कु जी है आर श्रटलांटिक-स्थित राष्ट्रों को मनमानी पर एक नियंत्रण है । दिन्दु- सताम उस चीन रे लिए मुख्य द्वार दे जिपकी स्वतंत्रता टापू के राष्ट्र जापान द्वारा खतरे में पढ़ गई थी श्र उसने वहां के ४१ करोड़ निवासियों को श्राज़ादी को संकट में डालने को कोशिश की थी, पर अब खुद विजेता के गर्वीने चरणों पर गिरा पड़ा है । जापानी साम्र।ज्यवाद के भयंकर रोग को एक दवा श्राज्ञाद चीन हें । पर गुज्ञाम हिन्दुस्तान श्राषे-गुज्ञाम चीन केलिए नहीं लड सकता था। या यूरोप को युज्ञाम नहीं वरना मकताथा। पत्नी श्रवस्था में हिन्दुस्तान की श्राज्ञादी नई सखामा- जिक व्यवस्था का बुनियादी तथ्प कायम करेगी श्रोर इस देश के चालू सामूहिक संघर्ष का ध्येध ऐसे दी श्राज्ञाद हिन्दुस्तान की स्थापना करना है । इस जङ्ाह में अगर दिन्दुस्तान निष्क्रिय दर्शक को तर बैठा यद्द देखता रदता कि. यहां दूसरे स्वतन्त्र देशों को गुब्लाम बनाने के वास्ते प रिचाक्षित युद्ध में भाग लेने के लिए भाड़े 6 टट्टू भर्ती किये जा रहे हें श्रौर भारत की श्रपनी दी भ्ाज्ञादी- जेपी चतंमान समस्या की उपेन्त! का जा रदी दै, तो इस का मतलब भावी विश्व-संकट को निमंत्रण देन! होता, क्योंकि बिना शाज़ादी दासिक किये हुए दिन्दुस्तान पर ज्ञाज्ञच-मरी निगाह रखनेषाल्त नव-शक्ति-संयुक्त पढ़ोसी या पढ़ोसी के पढ़ोस। को लार टपकती । उस समय भारत छी श्रभिनव राजनीति, संसार की श्रार्धिक परिस्थिति श्र विविध सेतिक पदलुश्ओों के बाइरो दबाव के कारण कापरिस ने एक योजना कौ कठ्पना ङ श्रोर १8९४२ मे सामूहिक श्रवज्ता श्रारम्भ करने का निश्चय किया। इन प्रष्ठों में उस संवर्प के विभिन्न रूपों श्रीर उसके परिणामों का वर्णन है जो बम्बई मे ८ श्रगस्त १४४२ में किये गए फंसले को श्रमल में खाने के लिए किया गया था । 'मारत-छोडढ़ों' का नारा दस ऐतिहासिक प्रह्ताव का भूल-बिन्दु था जिसके चारों श्रोर उसी के अनुसरण में शान्दोज्नन चन्नता था | जत्द हो यद बदरका नारा वन गया. जिसमें स्त्री-पुरुष श्र बच्चे सभी समा गये; शहर, कस्वे श्रौर गांव सभी जुट गये; पदाधिकारी से किसान तक सभी सम्मिक्षित हो गये; उपापारी और छारखानेदार, परिगणित जातियां श्रोर श्रषदिम निवाक्षी सभी इस भावना के भ्रमे, हंगामा श्रौर क्रांति को लहर में गये श्रल्ग-श्र्ग ज़माने में विभिन्न शताब्दियों मे जदा-जदा रा पेषे हीप्रभ वर्मे बहते रदे द| किप समथ भमेरिकाकी बारी थी, कभी फ्रांस को, किप्ी दशाब्द में यूनान कोतो कभी जमनी की । इन सभी विद्रोह के कायं-कारण का तास्विक मुख एक दो था । सरकारों की शरीर-रचना, शासन को श्रवयव-क्रिया भौर राजनैतिक जमातों का रोगाणु निदान सभा जमाने में शोर सभी मुक्कों में हुश्रा है । र जूलियन हक्सले ने कहा दे--'“'श्राख़िर इतिहाप्त उन कल्ाओं में नहीं है जो मानवीय संदर्भो--तथ्यों को निम्नतर स्थान में पहुंचाती दै । किसी स्वर से चित्र को सद्बोधन नहीं भी मिक सकता, भौर चित्र रा रोई कहानी कहना मीज्ञरूरी नीं दे । पर इतिहास पुरुष, स्त्रियों भर




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