व्यवहार और सभ्यता | Vyavahar Aur Sabhyata
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
134
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)घामिक व्यवहार १३
मांगकर अपना ओर अपने बाल-बच्चों का पेट भरना; मौज
उडाना कृतघ्न पुरुषों का कामहै । भीखया दान लेकर उसका
बदला चकाना ही चाहिए; उपकार करना ही चाहिए
१५--घर पर आये भिक्षु को यदि आप कुदं देना उचित
नहीं समभते तो उसे कटु शब्दों से सम्बोधित न करो । अपने कुछ
नदेनेकी बात उसे नम्रतापुवेंक मीठे शब्दों में कहो । “आगे
बढ़ो,' 'यहां कुछ नहीं है,' (कारखाने मे काम देखो, 'हट्टा-
कट्टा है, घास का गट्टा बेचो,' “क्या तेरे बाप का देना आता है?
क्या कर्जा मांगता है ?' इत्यादि कठोर वचन मत कहो ।
१६--पागल, बेहोश, कोढ़ी, निर्बल, दीन, हीन, असहाय
द को मत छेडो । दुखी को दुख पहुचाना नीच मनुष्यों का
काम है ।
१७--धामिक वाद-विवाद में, पंचायतों में, और दूसरी
बातचीत के समय गुस्सा मत आने दो । जोर-जोर से मत बोलो
गाली-गलौज न करने लग जाओ। असहिष्णता अधमं है और
क्रोध भी पाप की जड है । सभ्यताप्वंक बातचीत केरो । धयं मत
छोड़ो । लाजवाब होने पर चुप रहो । अण्टशण्ट बातें बकने की
शलती न करो ।
१८--दूसरे धर्म के अनुयायियों को घृणा की हृष्टि से मत
देखो । उनके साथ भाई की तरह व्यवहार करो। धमं अलग-
अलग होने से मनष्यता मत छोड़ो । धम मनुष्यता छोड़ने की
भाज्ञा नहीं देता । जिस धर्में के आप अनयायी हों उसीको सारा
जगत माने, यह ज़रूरी बात नहीं है । जितने भी मत-मतान्तर
प्रचलित हैं, वे सब अच्छी बातों की नींव पर बने हैं । उनके प्रवत्तक
हम साधारण मनुष्यो से उच्च थे । अतएव किसी भी मजहब या
मत-पंथ को बुरा न कहौ । कोई भी एेसा मत-पंथ नहीं, जिसमें
सभी अच्छी बातें हों या सभी बरी हों । धर्म की प्रतिष्ठा उसके
अनुयायियों से बढ़ती है । धर्म के ऊपरी आचरण में रहनेवाले
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