ग्राम सुधार | Gram-sudhar

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Gram-sudhar by गणेशदन्त शर्मा 'इन्द्र' - Ganesh Dant Sharma 'Indra'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ७ ) सारांश यह कि जब तक हम छोंग ग्रामीण दशा न सुधारेंगे और देहाती भाइयों को अपने बराबरी का नहीं बना कहेंगे, तब तक हम परतंत्रता से, कदापि मुक्त नहीं हो सकते । यह ध्रुव है, सत्य है, अटक है। बिना आम-सुधार के तथा म्ामसंगठन के हमारा स्वाततव्य-युद्ध सफर नहीं हो सकता । यही कारण है ॐ इन दिने प्राम-युधारके ङ्प चारों ओर से आवाज .आ रही । निना आम-गठन के हमारी गाड़ी अब आगे नहीं बढ़ सकेगी । हर्ष का विषय है कि अब बड़े लोगों की दृष्टि छोटों की दशा पर पड़ी है । ग्राम-सुधार को आबश्यकता भारतवर्ष में अधिक संख्या गांवों की है । शहर और कस्बे यहां उठने नहीं हैं, जितने कि दूसरे देशों में हैं | हमारा देश तो गांवों ही का देश है। यह कृषि-प्रधान देश है। यहां सिर्फ २३१६ शहर हैं। जिनमें ३,२०,७५,२७६ मनुष्य रहते हैं, परन्तु ६,८५,६६५ गांव हैं, जिनमें २८,६०१, ६७, २०४ गरीब देहाती मनुष्य निवास करते है । अर्थीत्‌ फी सेकड़ा ९० मनुष्य गांवों में रहते हैं । इससे कह जा सकता है कि भारत का सच्चा रूप तो गांव और गांव के रहने वाले हैं, और दुःख




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