चितेरों के महावीर | Chiteron Ke Mahavir

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Chiteron Ke Mahavir  by प्रेम सुमन जैन - Prem Suman Jain

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

Author Image Avatar

Professor  (Dr.)  Prem   Suman   Jain  D. Lit. ,  UDAIPUR

            Born at Sinundi in Jabalpur Distt. in Madhya Pradesh on 1st August, 1942. Professor (Dr.) Prem Suman Jain is an eminent Prakrit Scholar and Jainologist by his commendable literary and research contribution. Dr. Jain retired as the Professor and Head of the Department of Jainology and Prakrit from M.L. Sukhadia University, Udaipur after over 30 years of service. He was also Dean, faculty of Arts and Dean Student Welfare in the University.

Dr. Jain has  also served as Director and holding the Professor and H.O.D. Post in the D

Read More About Prem Suman Jain

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
२ चितेरों के महावीर समस्त {गुरुकुल भित्तिचित्रों-सा शान्त हो जाता टहै । तुमने ध्यान दिया होगा, इर वषं पूरा होने को भ्राया, न जाने श्राचार्य किम साधना में लगे हुए हैं? प्रात: प्राथना के बाद वे उघर गुफाओं की पंक्तियों में उतर जाते हैं धौर तब लौटते हैं जब हम विश्राम करते होते हैं ।' शतुम्हें भी ज्ञात नहीं ? हम तो इसलिए निश्चित थे कि ध्राचार्ये कश्यप चित्रांगद के परामर्श के बिना रंग में कूची भी नहीं डुबोते । तुम्हें पाकर वे पपनी कल्पना को साकार हुषा मानते है, भित्र! यहीतो विषाद है । चित्रांगद की कला-क्षमता में धाचार्य को इतना भ्रविश्वास क्यों ? श्र फिर मेरे साथ तो इतने शिल्पी हैं । कुशल स्थपित, रंगधर्मी कलाकार, पत्थर मे प्राण फुकने वाले मूतिकार। वे श्रादेश तो करते भ्रौर फिर देखते श्रपने भ्न्तेवासियो की कला का चमत्कार । किन्तु न जाने प्राचायं क्त कल्पना में लीन हैं? तुम्हीं बताग्नो, उस श्राचायें की चिन्नता हम जसे कलासाकों को नहीं सालेगी, जिसने हमें रेखांकन से लेकर रंग-संयोजन तक की कला में पारगत करने में ग्रपने जीवन के कितने वर्षों का होम किया है ? 'बन्घु ! खिसन न हों । भूले न हों तो झाज प्रकाश पर्व है । दीपमालिका भाचायं प्रवरने गतवषं शझ्राज के दिन कितना उत्सव किया था ? कितने प्रफुल्ल थे, उसका कारण तो वे जानें । किन्तु श्राज फिर साँयकाल की प्राथ॑ना में वे हम सबके बीच होंगे । यह में जानता हु । क्यों नहीं, भ्राज हम उनकी वषं भर की साघना का रहस्य जानने की उनसे जिज्ञासा करें ? धाथ्रो, धशुमालो श्रपनी यात्रा के पड़ाव की भोर भ्रग्रसर हो रहा है, हम भी गुरुकुल कीभ्रोर चले । सहयोगी कलाकार भ्रापकी प्रतीक्षा कर रहे होंगे ।' चिक्रांगद श्रीकण्ठ का हाथ थामे उदयगिरि की उपत्यकासे नीचे उतरने लगा । शप्र्धगश्युति कीदूरी पर स्थित कलासाधकोंका भावास भ्राज उच्चे भपरिचितसा लग रहाथा। पता नहीं, षड़ी-दो घड़ी बाद ण्ह किन रहस्यों के बीच होगा । गुरुकुल का विशाल सभागुह । चारों ओर की भित्तियों पर भारतीय इतिहास, धमे, पुराण-कया के विभिन्न प्रसंगो का चित्रांकन इतना मनोहर




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now