विद्वद्विनोदिनी | Vidvadvinodini

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Vidvadvinodini  by कल्याण ऋषी - Kalyan Rishi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उपस्थापना ११ इसी विचारते प्रेरित पूज्य मुनि कल्याण ऋषिजी ने पहेलियोंका एक ऐसा संकलन करने-करने का विचार अभिव्यक्तं किया जिसमें संस्कृत, मराठी, हिन्दी, गुजसती आएंदि भाषाओं के लोकसाहित्यमें निहित सामग्री एकत्रिव की जा सके । १९६६ के चातुर्मास पूर्ण होनेके लगभग डेढ माह पूर्व यह विचार उन्होंने मेरे समक्ष रखा । मुनिजी का यह विचार नहीं, आदेश था। अस्वीकार करनेका कोई प्रइन ही नहीं था। और यह भी आवद्यक था कि यह संकलन चार्तुमास होने के पूर्व समाप्त हो जाये इसलिए कुछ सामग्री का निर्देशन मुनिजी ने दिया और कुछ मेंने खोजी । और इस तरहसे समय की सीमा के भीतर ही यहू कायें सम्पूर्ण हों गया । सच तो यह ह कि मुनिजी का संयोजन निर्देशन, ब आशीर्वाद ही इस कायें को इतनी जल्दी समाप्त करा सका । इसलिए श्रद्धा व भक्ति के साथ प्रस्तुत संकलन उन्हीं के लिए समर्पित करता हूँ । समय कम होने के कारण देहातों में स्वयं जाकर पहेलियों- का संकलन अधिकं नहीं कर सका । फलतः प्रकाशित साहित्य ही प्रस्तुत संकलनका आधार बनाना पडा । एतदर्श मैं उन सभी लेखकोंका आमारी हूँ जिनके प्रत्थोसि सामग्री लेकर संकलित की गई हैं । विशेषरुपसे श्री रामनरेश त्रिपाठी का । प्रस्तुत सेकलन चातुर्मास पूर्ण होने के प्रूवे ही कर लिया गया था और कमी का प्रकादित भी हो जाता. परन्तु अचानक कुछेक अवरोध अ जानेके कारण यह नहीं हो सका ।




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