शरीर विज्ञान | Sharir Vigyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
428
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१३
वास्तव » परमारुके सिद्धान्त, का जितना सुन्दर बणेन न्याय-
दर्शन मे है, उतना और किसी दर्शन में नहीं हे । न्यायदर्शन में
दो परमार के स्कंघ को द्व यरुक और तीन परमारुओं के स्कंघ
को त्रसरेशु कहा गया हे । चहां विज्ञान क 'माजीक्यूल” (1 016-
©ण1€ ) शब्द् का प्रयोग बिल्कुल इसी अथे मं किया गया हे ।
अत: हमने भी अपने भन्थ में 'मालीक्यूल” शब्द के' लिये
“त्रसरेणु” शब्द का ही उपयोग किया है ।
हमारी सम्मति मे नवीन पारिभाषिक शब्द तभी बनाने
चाहिये, जब इ गलिश शब्द का पर्यायवाची हमारे प्राचीन
संस्कृत भंडार में न मिले । प्राचीन संस्कृत शब्दों को छोड कर
नवीन शब्दों की रचना च रना न केवल निन्दनीय हे, बरन् इससे
अपनी श्रज्ञता मी प्रगर होत्ती है ।
शमस्तु वतेमान प्रन्थ शरीर विज्ञानः की रचना इसी सिद्धान्त
पर की गई है । इस ग्रन्थ में शरीर सम्बन्धी केवल पाश्चात्य
सिद्धान्तो' को ही दिया गया हे । मन््थ का कलेवर बढ़ जाने के
भय से श्रायुर्वेदिक मतभेद की शोर निर्देश भी नहीं किया गया है।
हिंदी मे पारिभाषिक शब्दो के प्रश्न की जरिलता बराषर
बदती ही जा रही हे । यद्यपि उचित तो यदह होता कि इस प्रकार के
पारिभाषिक शब्द वेद्य और डाक्टरो की एक सम्मिलित समिति
द्वारा तय किये जाते, किन्तु यह निश्चय है कि लेखकों का इस
प्रकार का परिश्रम भी इसके लिये सहायक ही सिद्ध होगा। इस
प्रकार का जद्योग करने वालो तथा तुलनात्मक अध्ययन के
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