ओझा निबन्ध संग्रह भाग - 3 | Ojha Nibandh Sangrah Bhag - 3

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Book Image : ओझा निबन्ध संग्रह भाग - 3  - Ojha Nibandh Sangrah Bhag - 3

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ द्रोभा--निष-ध समह प्रकाशन के बाद कई इतिहासकार उसमें दिए गये शुक्रवार, फाल्गुण विदि ( पूर्णिमांत मास चेत्र विदि) ३, १५५१ शक सम्वत्‌ (फरवरी १६, १६३० ई० ) को शिव्राजी का ठकं जन्भ-दिन मानने लगे हैं। इन सारी विभिन्‍न तिथियों के पत्त में समय-समय पर श्रनेकानेक लेख प्रकाशित होते रहे हैं । सन्‌ १६२५ ई० मे पूना से प्रकाशित “शिवचरित्र-प्रदीप'” नामक संग्रह अन्य के मी कई लेखों में इसी समस्या का सविस्तार विवेचन है । श्रपने शिवाजी का जन्म-दिन'” शीर्षक लेख में श्रोभाजीनेमी इस प्रश्न पर श्रपनी सुश्पप्ट सम्मति प्रगट की है श्रोर जेघे “शकावली मे दी गई तिथि को दीक मानते हुए उत्तके समर्थन में “शिव भारत” प्रम्थ यर तंजोर के शिलालेख के साथ ही जोधपुर नित्राप्ती चरडू ज्योतिषी के वंश्जों के संग्रह मे प्राप्य शिवाजी की जन्म-पत्री तथा उस्म दी गई जन्म तिथि का भी उल्लेख किया है । जोधपुर से प्राप्त इस जन्म-पत्री के विषय में विरोधी मतत्रालों ने कई एक श्राशं का की हैं। “'शिवछत्र पतीची १ कलमी चर” का सम्पादन करते हुए बड़ोदा के वि० स० वाकसकर ते इस सम्बन्ध में लिखा था--“रा० ब० श्रोभा के नेत्रों में कोई रोग हो गया था जिते उनमें शय्य किया करनी पड़ी और उसके बाद उनकी देखने की शक्ति बहुत ही दीण हो गई है । तथापि वे केवल थ्रत्रों के साम्य से ही उस कुण्डली को शिवाजी के समकालीन शिवराम ज्योतिषी को ही मानते हैं । श्रन्र के साम्य का यह पुरावा बहुत ही निर्बल श्र सर्वेथा च्रमान्यं ३। श्रन्य तथा इस कारण भी यह कुएडली विश्वसनीय नहीं है। साथ ही शिव भारत में ग्रहों की स्थिति का जो वर्णन है वह इस कुरडली में दी गई स्थिति से भिन्न है यह्‌ बात मी भूतनी नही चाहिए । (प्र. २७-२८) | किन्तु इस सारे वादविवाद के बाद भी अब तक शित्राजी के ठीक जन्मदिनं के सम्बन्धं प्रपुख इतिहासकारों का कोई मतेक्य नहीं हो पाया है । सर यदुनाथ सरकार लिखते हैं £---“उनकी ( शिवाजी की ) निशिचत जन्मतिथि के बारे में कोई भी समकालीन उल्लेख प्राप्य नहीं है| उनके दरबारी, व्याजी श्रनन्त समासद, भी सन्‌ १६९७ इ० में ( 'शिवर-दछत्रपति चँ चरित्र ) लिखते समय इस सम्बन्ध में मूक ही रहे । दोनों विमिन्न पह्ों के लेखकों ने उनके जन्म की जो श्रलग २ तिथियाँ दी हैं उनमें में सोमवार, श्रप्रेल १०,१६२७ ई को श्रधिक मानता हूँ । ( शिवाजी, श्वाँ सं; पृ. १८ ) | मरार्टों के अ्रपुख इतिहाप्कार डॉ० गोत्रिन्द सखाराम सर देसाई ने श्रपने नए अन्य “न्यू हिस्ट्री श्राफ़ दी मराठाज़” में लिखा है कि “'दुर्गाग्यवश ऐसे पर्याप्त प्रमाण प्राप्य नहीं है जिनके श्राधार पर विशिचत रूप से यह कहा जा सके कि दोनों तिथियों में से कौन सी बिस्कुख सही है :” श्रपने उक्त इतिहात-प्रंथ में सरदेसाई श्रप्रेल ६, १६२७ ई० को ही जन्म-तिधि स्वीकार कर चले ह । ( खरड १, पृ, ८७) | महाराजा सवाई जयसिंह'” शीर्षक लेख पिलानी पे प्रकाशित होने वाली “'बिड़ला कॉलेज पत्रिका” के विशेषांक, बसन्त सं, १६८४ वि. (ईं. स. ९४३३) में प्रकाशित हुश्रा था | तब तक




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