अँधेरे की भूख | Andhere Kii Bhookh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21 MB
कुल पष्ठ :
234
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चुनाँचे खून धोकर हम तीनों श्राग के पाष जाकर बैठ गये श्रौर रोज
की तरह धीरे-धीरे बाते करने म लग गये । ं
आधी रात हो गई । मेरा बाप नहीं लोटा.। उस रात के सन्नाटे में
हमे धनुष की टंकारः सुनाई नहीं दी ।
भाई ने कहा, “बड़ी देर हो गई । अ्रमी तक दादा क्यों नहीं श्राये ?
बात उत्सुकता की थी | हमे काफी कौतूहल था | लेकिन हम यह
नहीं समभते ये कि हमारा बाप भी खतरे में पड़ सकता है | श्रधिकसेः
शधघिक हमने यही सोचा फि कहीं दूर निकल गया हे ।
मेरे भाई ने कहा, 'में देखता हूँ ।
“कहाँ जाओगे ?” बहिन ने पूछा ।
ष्देखू दादा श्रये या नहीं
समल कर जाना । बाहर भेड़िये हैं ।
मैंने कहा, “तू ठीक कहती है। हम उन्हें मार नही सकेंगे |”
माई ने धीरे से दरवाजा खोला मोका शरोर तरन्त बंद करके कहा,
पक्के तो कुछ भी नहीं दिखाई देता |”
वह आकर फिर हमारे पास आग तापने बैठ गया ।
मैंने कहा, “राज तो खाना भी नहीं खाया अभी ।”
मेरा बाप श्राकर खुद मांस पकाता था श्र तब ही हम खाते थे +.
जब बह नहीं रहता था तब दम पहले दिन का मांस खा लेते थे ।
बहिन ने कहा, “दादा झायेंगे तो उन्हें खाना पका मिलेगा तो खुश
हो जायेगे, श्राश्नो हम लोग पकाय ।
वह बिचारी हर तरह से बाप को खुश करने की कोशिश किया'
करती थी । भाई, एक चौकी सी थी; उस पर चढ़ गया और उसने रीछ
का मांस उतार दिया । रोज्ञ जितना पक्ता था उतना ही हमने काट लिया
और जैसे बाप की देख-रेख मेँ करते ये, वैसे ही उसको पकाने लगे ।
उसी वक्त सीगी बजने की श्रवा आरै । हमने सुना आवाज बाहर
श्र भू०-र (नि 1.9)
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