कलाविलाश | Kalavilash
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
190
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दम्मस्वरूप । (७)
दस्म स्वरूप-उस के नाम )
निरंतर मोाखाक्रार पिरत हए अति कड एवम् सहस धार वाटे माया के
कपटचक्र में मुख्य नामि-मध्य चक्र दम्भ है । इस के अतिरिक्त दम्भ नाम
का एक ज्ञाड है, हे पुत्र ! उसका स्वरूप सुन । चचट तेत्रों को पढकों की
आट मकर लेना यह उसका मूल है, पत्रित्रता उस के पुष्प हैं । यह दम्भतरु
स्नान कसन्ति भीगी ह रिखा का जर पानकर सुख रूप सेकडो शाखा
कैटाता ह अर्थात् विस्तार पाता ह 1 त्रत ओर नियमों मे वकदम्भ उत्पन्न हुआ
हे. गात नियमों से कर्मजदम्भ की उत्पत्ति दे ओर सवसे श्र माजीरदम्भ टै
[जिस की उत्पत्ति नेत्रों को धीरे २ आडे टेटे फिराने से हुई है ।
ऊपर गिनाये इुए दम्मों में वकदम्म दम्मराज कहलाता है, कुमेजदम्भ
दम्भमहाराज कहता है; एवम् माजारदम्भ एक चक्री-चक्रवर्ति महाराजा-
धिराज के पद् को प्राप्त है ।
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जिस के न्ख, डाढी, केदा अधिक मोटे हों, जिस के जटाजूट हों, जा
तरहतसी ए्त्तिका काम मे खाता हो, थाडा वोख्ता ह्य, ( जीव मरेंगे ऐसी घृणा
से ) सावधानी से जूते घर कर चलता हो, बडी गांल्वाटी पवित्री पहनता
हाथ में पात्र लने से मानो हाथ रुक गया हो बेस खाक में घोती डालकर हाथ
कतो खडा रखता हो, ठगच्यि टेटी कर अधिक कल्पना करता हो, नाना वाद्
कर अपनी पंडिताइ चढाता हो, मनुष्यों के समक्ष होंठ दहिटाक्र जप करनका
ढोंग करता हो, तथा नगर के मार्ग पर ध्यान करने मे तत्पर रहनेवाठा, तीथोंमें
अभिनय के साथ आचमन करने वाटा एवम् अनेक वार स्नान करनका
ढोंग करके सम्पूर्ण मनुष्यों कों रोक रखनेव्राठा, वारवार सहज वात में कान
को सपद करनेवाठा, दांतों से “सी सी” दाव्द करके हमन्त ऋतु में स्नान
की अतिद्यय कठिनता को प्रगट करनवाटा मोटा तिङ्क करके एसा प्रगट कर
नेवाटा किमे दवता कौ महा पूजा करता हूं. ऊपर से मानाकामकी षि
मस्तक पर पडा हा तेस अपन मस्तक पर पुष्प को. धारण करनेवाछा इत्यादि
मनुप्या का दाग्मिक जानना चाहिये । दाम्मिक पुरुष सदा दाठ छोगों में दो
सुजाता है--ुद्विमानों में नहीं । दन्मी, गुणवानों पर दाट्रि नहीं करता और
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