ज्ञानेश्वरी | Gyaneshvari
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
314
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ट ज्ञानेश्वरी
वीर विकर्ण हैं । देखिए, ये अश्वत्थामा हैं । कृतान्त भी मन मेँ इनका डर
रखता है । (७)
अन्ये च वहव: झूरा मदथ त्यक्तनीविता। ।
नानाशस्त्रप्रहरणाः सवे युद्धविरारदाः 1९]
समितिज्जय, सामदत्ति इत्यादि और भी बहुत से वीर है जिनके
वल का अनुमान ब्रह्मा भी नदीं कर सकते । (८) ये शख्विदया सं प्रवीर
हैं और मन्त्रविद्या के मूत्तिमान अवतार हैं । सब अख्विद्या इन्हीं के
कारण जगत् मे प्रसिद्ध हुड दं 1 (९) जगत् मे इनके समान मल्ल नहीं,
हैं। इनमें पूर्ण प्रताप है । तथापि सवने प्राणों समेत मेरा ही अनुसरण
करिया है । (११०) पपित्रता का हृदय जैसे पति के सिवा किसी वस्तु का
स्पर्श नहीं करता वैसे ही इन उत्तम येाद्धाओं का मन सेरी ओर खिंचा
हुआ है। (११) ये ऐसे उत्तम और निःखीम -स्वामिभक्त हैँ कि हमारे
कार्य के सामने अपने प्राणों का भी ङ्द नदीं सममते। (१२) ये सव
युद्ध का चातुये जानते हैं और श्चपना कला से कीतिं के जीतते हैं।
चहुत क्या कहूँ, चान्रिय-धर्म इन्हीं से प्रसिद्ध हुआ है। (१३) ऐसे सब
अकार से पूर्ण वीर हमारे दल में हैं । इनकी गणना क्या कहूँ ? ये झन-
गिनती हैं । (१४)
पर्याप्तं तदस्माकं वलं भीष्माभिरक्षितम् ।
पयां लिदमेतेषां वलं भौमाभिरक्षितम् ।१०॥
सिवाय इसके जो क्त्रियों सें श्रेष्ठ है, जा जगत् में अत्यन्त श्रेष्ठ
योद्धा है, उस भीष्म के हमारे दल के सेनापतित््र का 'धिकार है । (१५)
इसके वल का 'ाश्रय पाकर यह् सेना दुगं के समान फैली है । इसके
सामने तीनों लोक अरप दिखाई देते हँ । (१६) देखिए, समुद्र॒ एक तो
पहले ही डरावना होता है, आर फिर उसमे जेसे वडवानल सहकारी
हय जावे; (१७) अथा प्रलयकाल की अग्नि ओौर महावात इन दोनों का
जसे संयाग हो जवे, वैसा दी हाल गंगादुत के सेनापति होने से इस
सेना का दिखाई देता है ! (१८) अव इमसे कोन भिड़ सकता है १ इसकी
तुलना में यह पारडी. की सेना, जिसका सेनापति यह वलाल्य भीमसेन
है, सचमुच अत्प दिखाई देती है। (१९) इतना कहकर वह ॒स्तन्ध
हा गया । (१९०)
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