युगद्रष्टा भगत सिंह | Yugdrashta Bhagat Singh

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Yugdrashta Bhagat Singh by वीरेंद्र सिन्धु - Virendra Sindhu

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चुपचाप क्रान्तिकारियों के इतिहास की टिप्पणियाँ तैयार करने में लगाने वाले आदरणीय पत्रकार श्री फूलचन्द जैन मिछाप भवन सब्जों मण्डी दिल्‍ली का स्मरणीय नाम यहाँ दूँ । आठ घण्टे रोज वे राष्ट्रीय अभिलेखागार में लगाते रहे है और क्रान्तिकारियों के सम्बन्ध में वहाँ की दुर्लभ फाइलो में जो उल्लेख है उन की सक्षिप्त टिप्पणियाँ और सन्दर्भ नोट करते रहे है। इन टिप्पणियो से उन का घर हो छोटा अभिलेखागार हो गया हैं । उन के पास ५-७ हजार पृष्ठो की सामग्री है । जव उन्हों ने मुझे बताया कि इन ऐ्टों में १५००० क्रान्तिकारियो के सम्बन्ध में जानकारी है तो मैं स्वव्ध रह गयी । क्या इतने वलिदानी इतिहास की उपेक्षा कर कोई देख महान हो सकता है? फिर यह उपेक्षा सिफ॑ क्रान्तिकारी इतिहास की हो तो नही हुई ? दादाभाई नौरोजी के कार्यो को हम ने कहाँ संग्रहीत किया है ? बग-भग का विवरण कहाँ है ? छोडिए इन सब को ससार की सब से बडी क्रान्ति-- अँगरेजो भारत छोडो १९४२ का कोई इतिहास हमारे पास है ? कया इतिहास की यह उपेक्षा राट्र के लिए घातक नही है ? बहुत नम्रता के साथ कहूँ कि जो कुछ अगले पृष्ठो मे है वह इस समय न लिखा जाता तो फिर कभी लिखा ही नही जा सकता था मुझे प्रसन्नता है कि इन पृष्ठी में सरदार अजीत सिंह की विस्मृत विधिष्रता सरदार किन सिंह की उपेक्षित विशालता और भगत सिह की ठलिदानी चकाचौध में छिपों युग-प्रवर्तकता आ गयी हैं औौर भातकवाद एवं क्रान्ति की सध्यरेखा भी चिद्धित हो सकी है । मेरे परिश्रम की सार्थकता इसी मे हैं कि देन की नयी पीढ़ी के युवक-युवती देश-भक्ति के रग में रग जायें और देश के सब निर्माण में अपना भाग अदा करने के लिए श्री अजीत सिंह सत्यार्थी के घव्दो में सोचे-- सम वन मस्ट वीप सो दैट अद्स में छाफ सम वचन मस्ट सफर सो दैट अद्स में सेव सम चन मस्ट डाई सो देट अदसे मे छिव । अर्थात्‌ किसी एक को रोना चाहिए जिस से दूसरे अनेक हँस सकें किसी एक को यातना भोगनी चाहिए जिस से दूसरे अनेक सुरक्षित हों किसी एक को मरना चाहिए जिस से दूसरे अनेक जीवित रहे । हमारा सकत्प हो कि वह एक हम होगे और वे अनेक हमारे देदावासी । इसी में हमारी तरुणाई की शोभा है इसी में हमारे भारत का उज्ज्वल भविष्य है। -- वीरेन्द्र सिन्धु भगठ निवास ० प्रदूयुम्न नगर सहारनपुर उत्तर प्रदेश रुप सितम्बर १६६८.




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