जैन तत्त्व का नूतन निरूपण | Jain Tattv Ka Nutan Nirupan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
185
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about धीरजलाल के० तुरखिया - Dheerajlal K. Turkhiya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श
+ (ए स
दर +^ ५१५ ^ ,* ^^ ५९ ^१« ५१. १० ^^ © = £ 4 ५९ १ == ०१५ ५१५ ०९. १ १५ ^
| ५ ~ ~ ॥ ~ ~+ = = न {न
न
(4
९५ ५६.५१ 8. ५१ शक 94 ५१५ ५9 ४ ०१.
न बिन
४4 १५ ०१ १ न
न 9 (५ ¢ कः
८
५५ १ १५ न ५५ १ नै ०१ ५१५ 8
0१ ०१ कि न
~ ~ ~~
कलः ५) ४५ 8 |;
प्रस्तावना
जनाचाय 'प्रागमोद्धारफ प्रज्य श्री श्वमोनक उपिजी
स^ णुत ( जन तस प्रकाश! के शुजरातों छनुवाद के दिये
मौलिक पितान की दप्टि से उस ग्रन्थ में पे ससदों को
मीट रर्प में छुट्ुसंग्रह फिया या, पिन्त सुलरानी में उस प्र
पम धमुपाद् ने हो सफसे से उस ग्रन्थ फः चि निनी डे
नररियक सोटस जन प्रकाश को हो ररे ! श्सश पथ से इस
नान्त्पिफ विभाग को प्रकाशित फिया । उस विनाग को
पुर्तफाकार सपमे दयन क गुजराती श्रनि पाटयां
पी भापना लागत लिने मतन ममान दः दाननोर श्रीमान
सरष्रम्नसी प्रगनिया पो श्यावित् महानास या पन
दिंदी में ध्यापप सामने उपस्विस हो सभी है|
यट सप्र शयने सदापुर्पा पे घरार ये रखतें। मे
सार रदप 1 एुससे जा दरन््पन पनत उसने मुर
परय प्र सागर गू देख पे रोग श्र प्रवाद ग्ट
त्स स्र सागर | दहा व न्य गप्र~ शि मषः
५ ॥1
+ ~ध [न व यन ~ क कि [1
॥ मेदे्प द्याया ` [त वना. रोय, [यन्दयन ह्र
विवार मेय पमाया णय पदर (सनि रयश्
31.3.19.
ष
ल #।
|
4
~
स्र
रथ
त
~~
1.
9) व = पट श 3 न्त
४“ | सो मादार सुदन, सारा दर
विवि
क 9 क
क शे व के ॐ किः ७ के थे के री है
ब दे ष |] | ४ $ ४ ५५ ५. ॥ ४१४ न कूद कक क क भक गण के के छ श श्व क
+
धन चर भल कक ५ श र
न र ।
,
के बा कर क ककष
9 # है. है
न
न्क
ॐ
का भ ५ ६
श ५§* न # ^ पि ४४० ण्न ह भ्र भ श नन
ष
ऋ क ५ 1४ ड
क
भ
User Reviews
No Reviews | Add Yours...