नियमसार प्रवाचन भाग-2 | Niyamsar Pravachan Bhag - ii

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Niyamsar Pravachan Bhag - ii by महावीर प्रसाद जैन - Mahaveer Prasad Jainश्री मत्सहजानन्द - Shri Matsahajanand

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श्री मत्सहजानन्द - Shri Matsahajanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गाथा २५ १९१ परमाणु हयो तो वे दोनों एक स्कंध बन जयेगे श्रौर बह रकधसारारुक्च हो जायेगा ! जो गुख श्रधिक है, उसी रूप दुसरा परिणम जायेगा । परमाणवोके वंघनका कारण-- यह्‌ वंघन स्निग्घरूक्षणुणके कारण होता है । ठर्ड-गरमीके कारण नदीं कि एक ठर्डा परमाणु हो श्रौर एक गरम परमाणु दो थवा एक कम ठरुडा हो, दृस्सा श्रधिक ठस्डादोश्रार वे परमाणु भिल जाये, एक वध हो जाये--रेसा उस शुणके कारण एक वधन नहीं होता है । रिन्तग्धरूक्षणुण लब श्वपनी बघनयोग्यकी सीमामे जितने अंश होना चाहिये; उन ंशोसे ऊपर हो और छन्यारणुमे झधिक दो गुण हो जायें तो उसका परस्परमें जो चघ है बह समवध है चौर तीन गुण 'मधिक वाले परमारुफुवोका पांच गुण अधिक वाले परमारणुवोंकें साथ वधन होनेको विपमचध कहते है । यह च्चा है परमाशुवोंकी । ` पुद्गलोकी परिस्थितियां-- उन परमागुवोके जाननेसे क्या फायदा शौर न जाननेसे क्या बिगाड़ ? दो गए रहने दो । इतना जानना तो झाव- श्यक है कि श्रात्मातिरिक्त अन्य सव पदार्थोसि त्यन्त प्रथक हूं; फिर भी जितना श्रधिक बोध दोगा, उतनी ही भेद्विज्ञानकी षिशद्ता प्रचलतामे सहायता होगी । जव जो भरनन्तगुखोसे पर दो शण, चार गुण श्रादिका वंघन कष्या गया है, वह उच्छृष्टपरमाशुकी बात है । वैसे उससे कम श्रंशके भी स्निग्ध छोर रूक्षमें बंध होता है, पर जघन्यणुण बालेके साथ बंध नहीं होता है । यदद झाचार्यदेवके द्वारा सर्वज्ञ प्रतीत उपदेश बताया गया है । ये बिखरे हुए परमारणु किस ढंगसे ऐसे एक स्कघरूप हो जाते हैं कि उससे परमाशुसम्बन्धी कायं भव व्यक्त नदी होता । चौकीके रूपमे परमारुवों का पुञ्ज हो गया तो रच परमाणु परमाुके रूपमेँ परिणमन व्यक्त कर सके; यह बात झब कहां हैं ? जला दो तो. जलन जायेगा । परसारणु कहीं जलते भी हैं ? । अतः ये छाए इस प्रकार स्निग्वहूक्षगुएके कारण वंधन को प्राप्त होते हैं । श्रणुवोके प्रकार-- चार प्रकारफे श्रु है--कारणपरप्रासु, कायंपर- मोरु, जघन्यररमा णु, उलृष्टपरमाणु शौर मध्यके सेद्‌ लगावो तो परमाणु ऊ श्चनन्त मेद हो जाते दै । उस परमाणुद्रन्यथे विभावपुद्गल नष श्राये है । विभाव नास है स्क्धपरिणमनका- प्सा विभावका भेद है । वे छणु पने स्वरूपे स्थित है । पारिणामिक भाव प्नौर परिणामक श्रनिनपयं सम्बन्ध--कारणपरमागुषों का परसस्वमाव है पारिणामिक भाव | पारिणामिक भाव वे बल चेतनसे ही नहीं होता दै, वहिक समस्त द्रव्यामे पारिणामिक भाद है | बह एक स्वभाव




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