सुबोध - पत्रावली १६ | Subodh-patravali (16 )

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Subodh-patravali (16 ) by मूलचंद्र जैन - Moolchandra Jain

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about मूलचंद्र जैन - Moolchandra Jain

Add Infomation AboutMoolchandra Jain

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
>. पि है असु जहा चक तनेगा निट कहगा-- मेरा भ्रीयुन नोपापम जीस सस्नेह नन्टाकार कहना उद घटन ही सल्लन व्यक्ति है = = घम्यासाणर्‌ थ , , शरान शरुः चि वैमाम षदि ४ से र०-८ षः गरेश्र्णी जद > 1 शरीयुन महाशय वर्णो मनादरलाल जी योग्य टच्छाकार-- पय श्नाया-- समाचार जनि-प्पारण्य चट. दी विमद गयु था-- १ देर चलना कटिन धा-- सय शर्या श्रनि ५० दाय चल-- व्यर्‌ प्रतिदिन श्रांता द- शव श्राशा द पद्द भी ,शास्त हो भामगा-- तो श्रापस्मति निख्लर यदी भावना भाष्दार्‌ जा श्ापकी बैयाइत्त किसीशे न करनापढे तथा एसी प्रत्ति शीघ्र ही हो नवेली माक सनन चूसन पड़े आप बिज्ञ हैं. हमारी शल्य में करिये । घा० लीनाराम पी स इून्छाबार तथा घा० मूलच ता को इन्छाकार माघ घरि १ श्रा? शु० चि० ९ ९००६. मणश्वर्णी मे (4 भ श्न हलक मनोद्रलाल जी याग्ये इ््दागास- पतर घाया समावारजान-मेणतो यद्‌ प्रिखास हैपरक कल्याणमागका कत्त तय भाय भी मात्तमागं का साधक नदी मोनमाग का साक्षादुपाय रागालि दोप निद्नि ई--रागारिक वी की 'अनुसचि ही सम्बर दै--रागादि निद्त्ति तो प्राणीमानरें दोता है किन्तु रागाद़ि की अनुसपत्ति सम्यस्तानी ही क होता है। अभी नो इम धरवासागर हैं-- श्र तो पकपान हैं नजान क्थ मृद जाय श्री नीवाराम जी से हमारा इन्दाकार कदना--




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now