हिन्दी पर फारसी का प्रभाव | Hindi Par Pharasi Ka Prabhav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १५ ) जाननेवाके भो हं । वे कनौजमे बहुत हं जो जौजके राज्यमें एक बड़ा नगर है।' ऊपरके व्णनसे संसारमें भारतीय सस्कृतिका क्या महत्व हैं यह स्पष्ट हो जाता है। मनुस्मृतिमें जब यह लिखा गया था कि 'इस देशमें जन्मे ब्राह्मणोसे पुथ्वोमं सब मनुभ्य अपने अपने धमं सीखें तब उसके लेखकको अवद्य ज्ञानं होगा, किं संसारके कोगोमें ज्ञान विज्ञानके प्रचारमें भारतीय विद्या ओर विद्वानोने क्या काम किया था। पाइचात्य जगत्में प्रसिद्धि ग्रीस वा यूनानकी अधिक है । पर ग्रीसको ज्ञान किसने दिया ? पाइचात्यों- के अनुसार उसका गुरु मिस्र या ईजिप्ट हैं। इसलिये पाइचात्य मतानुसार मिस्र ही संस्कृतिका स्रोत हैं। परन्तु यह 'बात नहीं हैं। मौलाना मुहम्मद हुसेन साहब आजाद मरहम ने अपने “सखुनदाने फ़ारस में लिखा है, देखो, हिन्दने या फ़ारसनें अपने इत्मका सरमाया मिक्लको दिया । मिसने दोनोसे लेकर यूनानको दिया । यूनानने रूमियाको दिया । रूमिया, यूनान व फ़ारसने अरबको दियो ओर फिर अरबसे तमाम यूरीप ओर एरियामं फला । मौलाना आजाद इसका निद्वय नहीं कर सके कि हिन्दने अपने इतल्मका सरमाया मिस्रैको दिया या फारसने । परन्तु अरबको तो भारतने प्रत्यक्ष ओर परोक्ष रूपके ज्ञान दिया, जिसे मौलाना नदवीने स्वीकार किया है । संस्कृत ओर फारसीमें अथवा वेदभाषा ओर जेन्दमं जो निकटता दै, उससे भारत ओर ईरानकी घनिष्टता स्वयंसिद्ध ह। ईरानको आर्यावत्तंका ही एक भाग समझना चाहिय । मद्रासके समुद्र-तटपर ट्रावनकोर राज्य तथा कालीकटके सामुरिया- जमोरिनके राज्यम अरब व्यापारी आते भौर निभय होकर रहते ओर व्यापार करते थे । हिन्दू राजाोका उनके साथ बहत शिष्ट व्यवहार था । परन्तु इस्लामके अम्युत्थानके बादसे अरबोमे लडाकी वृत्ति काम करने लगी थी । १. एतद्देशेप्रसुतस्य सकाहादगप्रजम्भनः । स्वं स्वं अरित्रं हिक्ेरन्‌ पृथिव्यां सर्वमानवाः ॥




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