यजुर्वेद | Yajurved

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९० । भरध्याय १ |] [ -१५ पृथिवि देवयजन्योषध्यास्ते मूलं मा हिऽसिषं प्रजं गच्छ गोष्ठानं बष॑तु ते द्यौबंधान देव । सवितः परमस्यां पृथिन्यार$शतेन पार्योऽस्मान््र ट यं च वयं द्विष्मस्तमतो मा मौक्‌ । २५॥ हे पुरोडाश ! तुम भयभीत न होश्रो । तुभ चञ्चल मत होभ्रौ, स्थिर ही रहो, यज्ञ का कारण रूप प्रोडाद भस्मादि के ढकने से बचे । इस प्रकार यजमान की सन्तति कभी दुःखादि में नहीं पड़े । भ्रंगुली प्रक्षालन से छने हुए जल ! मैं तुम्हें त्रति नामक देवता की तृसिं के लिये प्रदान करता हूँ, मैं तुम्हें द्वित नामक देवता की सन्तुष्टि के लिए देता हूँ मैं तुम्हें एकत नामक देवता की तृप्ति के निमित्त देता हूँ ॥ २३ ॥ हे खुरपी कुदाली ! सवितादेव की प्रेरणा से भ्रश्िनीकुमारों की भुजाओओं से भौर पूषा देवता के हाथों से मैं तुम्हं ग्रहण करता हँ । देवताभ्रो के तृप्ति साधन यज्ञानुष्ठान में बेदी खनन काय के लिये मैं तुम्हें ग्रहण करता हूँ । है खुरपे ! तुम इन्द्र के दक्षिण बाहु के समान हो « तुम सहस्ों शत्रूझों भोर राक्षसों के नाश्ञ करने में भ्रनेक तेजों से सम्पन्न हो । तुम में वायु के समान वेग है । वायु जपे भ्रग्नि का सहायक होकर ज्वालाभ्रोंको तीक्ष्ण करते है वसे ही शनन कमं में यह स्पष्ट तीव्रतेजवानादहै प्रौरभेष्ठ कर्मों सेद्रष करने बाले भ्रसुरों का विनाशक दहै ।। २४॥ हे पृथिवी ! तुम देवताथ्रों के यज्ञ योग्य हो । तुम्हारी प्रिय संतति रूप भोषधि के तृण-मूलादि को मै नष्ट नहींकरता हूँ । हे पुरीष ! तुम गौझों के निवास स्थान गोठ कोप्राप्त होप्रो। है वेदी ! तुम्हारे लिये स्वगं लोकके झभिमानी देवता सूयं, जल की वृष्टि करे । वष्टि से खनन दरा उत्पन्न पीडा की दाम्ति हो । हे स्वेप्रेरक सबवितादेव ! जो व्यक्ति हम से दर प करे भयवा हम जिससे हष करे एसे दोनों प्रकार के बरियों को तुम इस प्रूथिवी की “अस्तर्सीमा रूप नरक में डालो भोर सेकड़ों बस्घनों में बाँध लो । उसका उस नरक से कभी छुटकारा न हो ॥ २५॥




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