मिखाईल शोलोखोव चुनी हुई रचनाएं | Mikhail Sholokhov Chuni Hui Rachnayen

Mikhail Sholokhov Chuni Hui Rachnayen  by मिखाइल शोलोखोव - Mikhail Sholokhov

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चौक में खपरैल से ढके मकान के सामने वे रुक गये। संतरी कराह- कर घोडे से उतरा और उसे बाड़ से बांधकर तलवार खड़खड़ाता ऊंचे ओसारे पर चढ़ा । मेरे पीछे-पीछे चलता आ . खिड़कियों में रोशनी टिमटिमा रही थी। उन्होंने घर में प्रवेदा किया । लुकोच को तबाकू के धुएं के मारे छीक आ गयी उसने टोपी उतारकर भट से देवस्थान की ओर मुंह करके सलीब का चिन्ह बनाया | बुड्डे को पकड़ा है। गांव में जा रहा था । निकोल्का ने मेज़ पर टिका अस्त-व्यस्त बालोंवाला अपना सिर उठाया उनीदे पर कड़े स्वर में पूछा कहां जा रहा था? लुकीच आगे बढ़ा और खुशी के कारण उसे उच्छू आ गयी। अरे यह तो अपने ही हैं मैं तो सोच रहा था कि फिर से वो अधर्मी आ गये हैं ... बहुत डर गया था पूछते हुए भी डर लग रहा था... मैं चक्कीवाला हुं। जब मित्रोख़िन के जंगल से तुम लोग जा रहे थे तो मेरे यहां ठहरे थे मेरे प्यारे मैंने तुमको दूध पिलाया था. . कया भूल गये ? .. अच्छा कहना क्या चाहते हो ? मेरे प्यारे कहूंगा यह कल शाम को वो गिरोहवाले मेरे यहां आकर घोड़ों को अनाज खिलाने लगे .. मेरी हंसी उड़ाने लगे ... और उनका सरदार बोला हमारा साथ देने की शपथ ले ज़बर्दस्ती मिट्टी खिलवायी मुझे । इस वक्‍त कहां है वही हैं। अपने साथ ढेरों वोदुका लाये हैं पापी कही के मेरे घर मे पी रहे हैं और मैं दौड़ा-दौड़ा तुम्हें खबर करने आ गया तुम्ही कुछ करो उनकी अक्ल ठिकाने लगाने के लिए । घोड़ो को तैयार करने को कह दो .. बूढ़े की ओर मुस्कराता हुआ निकोल्का बेच से उठा और थकान के साथ बरानकोट को आस्तीन खींची । १७ 2-1152




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