धीरे बहे दीं रे भाग 4 | Dheere Bahe Deen Re Vol IV

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Dheere Bahe Deen Re Vol IV by गोपीकृष्ण 'गोपेश'- Gopikrishn 'Gopesh'मिखाइल शोलोखोव - Mikhail Sholokhov

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मिखाइल शोलोखोव - Mikhail Sholokhov

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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घीरे बहे दोन रे*'* : १९ पं इससे कह दूँगी कि नै व्येशेन्सकाया लौट जाऊँगी ।' उसने सोचा, लेकिन इसी समय उसे खयाल भ्राया कि सखे कपडे तो वहु उठा- कर लाई ही नही । फिर वह खाई के दरवाज़े के पास बैठी भ्रपने पति की, पसीने से सडी कमीज़े श्रौर पतलून ठीक करती रही । इस बीच रह-रहकर उसने झाँखे उठाईं श्रौर क्षितिज की भ्रोर जति सूरज परर निगहे डाली । इसके बावजूद उस दिन वह वहां से कही नही गई । उसका हियाव ही न हुआ । लेकिन, अगले दिन सवेरे सूरज उग भी नहीं पाया कि उसने तैयारी शुरू कर दी । स्तीपान ने उसे बहुत रोका, ज्यादा नही तो एक दिनि श्रौर सकने की मिन्नत की । लेकिन, भ्रकसीनिया ने इतनी दुदता से नहीं की कि झ्ागे उसने कुछ नहीं कहा । सिफं चलते वक्त बोला, “तुम्हारा इरादा क्या ब्येशेन्स्काया मे रहने का है ?”' “हाँ, फिलहाल तो है ।”' “तुम यहाँ मेरे पास नही रह सकती 7 “य्ह * कज्जाको के साथ रहना, मेरे लिए श्रव्ल की बात नही है ।” “शायद तुम ठीक कहती हो ।” स्तीपान ने पत्नी की बात का समथन किया, लेकिन उसने पत्नी को विदाई बहुत ही भावह्ीन ढंग से दी । हुवा दक्षिण-पूर्वी थी । दूर से श्राई थी श्रौर रात मे थक-सी गई थी । पर, सवेरा होने का समय होते-होते वह फिर ट्रास-कैस्पियन रेगिस्तान की उमस भर गरमी दोन के इलाके मे ला-लाकर उंडेलने लगी ध्रौर बायें किनारे की पानी से भरी चरागाहो के टुकडो पर टूट-टूट पड़ने लगी । उसने भ्रोस सोख ली, घुन्घ उडा दी श्रौर दोन-क्षेत्र की पहाडियो की खडियावाली चोटियो को गुलाबी कुहरे से मढ दिया । जगल मे अब भी आ्रोस थी । इसलिए झकसी निया ने सेडल उतार लिए, अपनी स्कट का सिरा बाये हाथ से पकड लिया श्र जगल की एकं सूनी सडक के किनारे-किनारे धीरे-धीरे चल दी । उसके पैर गीली घरती पर पड़े तो तरी उसे बहुत ही भ्रच्छी लगी । दूसरी श्रोर, खुदक देवा उसकी मोटी, नमी पिडलियो श्रौर गदंन को रह-रहकर चूमती रही ।




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