आगरा व फतेहपुर सीकरी के ऐतिहासिक भवन | Agra Aur Fatehpur Sikri Ke Aitihasik Bhawan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
92
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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प 3. ,
सांगा के भन्डे के नीचे एकत्र हुए थे । श्रागे चल कर १५२४ ईसवी में वह उन अफगानों के साथ युद्ध में
व्यस्त हो गया, जिनकी श्रबीनता में बंगाल पहले से ही था । परिग्पामस्वरूप उन सांस्कृतिक कार्यों के लिए
बाबर को कोई श्रवकाश नहीं मिल सका, जिनसे वह प्रेम रखता था । भारत में आ्राए झ्रभी उसे चार साल ही
हुए थे कि उसका देहावसान हो गया । उसके चरित्र की सौजन्यता उसकी मृत्यु में भी उतनी ही दर्शनीय थी,
जितनी उसके जीवन में रही थी । वह श्रपने पुत्र हुमायू से श्रत्यन्त प्रेम करता था, अपने संभल के इलाके
में निवास करते समय हुमाय मलेरिया से ग्रस्त हो गया । बाबर उसे श्रागरा में श्रपने बागमहल में लें या
और उसकी चिकित्सा करने के लिए तमाम कुशल चिकित्सकों को एकत्र किया । जब हुमायू' के बचने की कोई
आधा शेप नहीं रह गई तो किसी ने सम्मति दी कि खतरे को टालने के लिए कुरबानी की श्रावव्यकता है ।
उसके सभासदों ने सलाह दी कि मवमे श्रधिक मून्यवान हीरे कोहन्र को दान में दे देना चाहिए, किन्तु बाबर
ने इसका यह कह कर विरोध किया कि उसके जीवन में जितनी भी वस्तुएं थीं उन सब में हुमायू सबसे श्रधिक
प्रिय था, श्रौर उसने घोषणा की कि वह श्रपने बेटे के उपर स्वयं अपने को ही कुरबान करेगा, वह हुमायू के
गलंग के चारों ओर गम्भीरता के साथ परिक्रमा देने लगा, जैसे वास्तव में धार्मिक वलि दे रहा हो, झ्रौर इसके
बाद ईदवर प्रार्थना में रत हो गया, गीघ्र ही उसे यह कहते सुना गया । “मेने उसे ले लिया है...मेने उसे ले
लिया है ”। हुमायू तो भ्रच्छा हो गया, किन्तु बाबर बिस्तर पर पड़ गया । जब उसका देहान्त हो गया तो उसके
अवशेष काबुल ले जाए गए, जहां एक बाग में, “निकटस्थ स्थानों की श्रपेक्षा मधुरतम स्थान में” उसने प्रपा
मकबरा बनाए जाने की इच्छा व्यक्त की थी ।
स्रागरा में बाबर ने बाग लगवाए थे, महल, स्नानागार, जनाटय नथा करुणं रौर जलमा्गं वनवाए थे
किन्तु उमकी लडकी केद्वारा रोपे हए राम बाग श्रौर जोहरा बाग के श्रनिरिक्त उनमें मे कोई भी वाकी नही
बचा । ताज के सामने उसके द्वारा निर्मित नगर की नीवों के चित्त मिलते हूं । बाबर ने ही उस बड़ी सड़क
को योजना वनाई श्रौर उमके उ्तराधिकारियोँ ने उसे पूणं किया, जो श्रागरा से लाहौर को होती हुई काबुल
को जानी थी श्रौर जिसके कुछ भाग श्रब भी बचे हुए है । उसने सराय प्रादि का निर्माण भी कराया धा,
लेकिन भ्रब उनके कोई चिह्न नहीं मिलते उसने श्रपने लिए एक गानदार महन वनाने कं निष् कुस्वुन्तुनिया मे
एक प्रसिद्ध भवननिर्माता को भी बुलवाया था । ये वे दिन थे, जब महान् सुलेमान कुस्तुन्तुनिया में भवन-निर्माण
का कार्य करा रहा था । प्रसिद्ध तुर्की भवननिर्माता सिनान वे ने अपने प्रिय शिप्य यूसुफ को हिन्दुस्तान भेजा,
फिर भी झ्रागरा में या उसके आस पास उसके द्वारा रचित किसी भवन का पता नहीं मिलता ।
हुमायू' : दस साल तक १४५३० से १४५४० तक हुमायू' आगरा में रहा किन्तु लगभग निरन्तर ही
रगाक्षेत्र में अपनी सेनाओं के साथ रहने में उसे इतना ग्रवका नहीं मिल सका कि वह अपनी राजधानी को
सजा सकता । मानवों का नेतृत्व करने में, भ्रपने पिता जैसी प्रतिभा के श्रभाव मे, वह ग्रपने राज्य को संयुक्त
रखने में सफल नहीं हो सका । दोरखां सूरी ने, जो एक अफगान सरदार था और जिसने बाबर के मामने भूक
कर भी उसके पुत्र के विरुद्ध विद्रोह कर दिया, कन्नौज में उसे पुर्गोत: अ्स्तव्यस्त कर दिया । इस प्रकार पराजित
हो कर वह न केवल हिन्दुस्तान से ही खदेड़ा गया, बल्कि उसे काबुल से भी आगे भागना पड़ा । उसने फारस
में जाकर जगण ली, जो उस समय गाह नेहमास्य के श्रधिकारमें था ।
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