कथा सरित्सागर भाग - 2 | Katha Saritsagar Bhag - 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
32 MB
कुल पष्ठ :
1019
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सप्तम |. 1 छ
इस प्रकार, बहुत विन व्यतीत होने पर मी उसे पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई ! एक बार उसे इस
बात पर गम्भीर चिन्ता उत्पन्न हो गई ।। २७11
उसे अत्यन्त चिन्तिते देखकर रानी अलंकारप्रभा ने उसकी उदासी का कारण
पुछा ॥ रेट
प्रकन सुनकर राजा ने कहा--देवि ! मुझे सभी प्रकार की सम्पत्ति प्राप्त है, किन्तु
एक पुत्र का अभाव मेरी चिन्ता का कारण हो रहा है ॥२९॥।
मैने एक पुत्रहीन सत्त्ववान् मनुष्य की कथा सुनी थी, उसके स्मरण आने पर आज
चिन्ता बढ़ गई है'।३०॥
वहु कैसी कया है ? '-- इस प्रकार रानी के पूछने पर राजा ने संक्षेप से वह् कथा इस
प्रकार सुनाई ।।३१॥ ^
राजा सश्वशोल की कथा
चित्रकूट नामक नगर में ब्राह्मणों की सेवा में निरत ब्राह्मणवर नामक यथाथ नामवाला
राजा था ॥ ३ २॥।
उसका सत्त्वशील नामक एक विजयी और युद्ध में सहायता करनेवाला भक्त सेवक था ।
उसे राजा प्रतिमास एक सौ स्वर्ण-मुद्रा वेतन के रूप में देता था 1३ ३॥।
किन्तु परम उदार उस सत््वशोल के लिए इतना घन पूरा नही होता था; क्योकि पुत्र न
होने के कारण वह उस धन को दान कर देता था ॥ ३४१
वह सोचता था कि विधि ने मेरे मनोविनोद के लिए एक पुत्र नहीं दिया, केवल दान
देने का व्यसन दिया, वहू भी धन कें विना।॥२३५॥
संसार में पुराने और सूखे वृक्ष या पत्थर का जन्म होना अच्छा है; किन्तु दान का
व्यसनी होकर दरिद्र होना अच्छा नहीं ॥३६॥।
ऐसा सोचते हुए सच्वशील ने घूमते-घामते दं वयोग से अपने उद्यान मे कोष (खजाना)
प्राप्त किरा 1३७
अपने नौकरों की सहायता से, वह सत्त्वशील अपरिमित स्वणं ओर रलो से भरे हूए खजाने
को, अपने घर उठ्वा के गया (॥३८॥
इतना धन प्राप्त करके वह् सुख-भोग करता, दान देता ओर मृत्यो तथा मित्रो को
बाँटता हुआ सुख से रहने लगा ।\३९॥
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