संस्कृत के महाकवि और काव्य | Sanskrit Ke Mahakavi Or Kavya

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Sanskrit Ke Mahakavi Or Kavya by रामजी उपाध्याय - Ramji Upadhyay

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रामजी उपाध्याय - Ramji Upadhyay

Add Infomation AboutRamji Upadhyay

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
{1 ५ प्रातमेभ्याहमुगयाशैलतुंवनसागयः सम्भोगविप्रलस्भौ च मुनिस्वग पुराध्वरा! ॥ रणुप्रयाणी पयममन्त्रपुत्रो द्याद्यः । ब्णनीया यथायोगं सांगोपाज्धा अमी इह ॥ कवेबू त्तस्य बा नाम्ना नायकस्येतरस्य वा । नामास्य सर्गोपदेयकथया सर्गनाम तु ॥ इस परिभाषा के अनुसार सगंबन्ध कोटि की रचना का नाम सहाकाव्य है। इसका नायक देवता या. धीरोदात्त, गणी और उन्वकुलोत्पत्न होता है । एक वंश के असेक अभिजात राजा भी नायक होते हैं । महाकाव्य में श्वज्ञार, वीर और शास्त में से कोई एक रस अंगी (प्रधान) होता है) अन्य रस अप्रधान (गौण) होते हैं । कथा- वस्तु में नादक के समान सच्धियाँ रहती हैं। महाकाव्य की कथा इतिहास-प्रसिद्ध होती है भयवा किसी महापुरुष के सम्बन्ध में होती है । धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष में से एक ही उसका फल होता है। महाकाब्य नमस्कार, भाशीर्वाद या कथावस्तु के सिर्देश से अरम्भ होता है) कही-कहीं दृष्टो की निन्दा ओौर सज्जनो का गुमान होता है। इसमें न तो बहुत छोटे और न बहुत बड़े भाठ से अधिक सगं होते हैं। प्रत्येक सर्ग में एक ही छ्द होता है, किस्तु सर्ग के कुछ भस्तिम दलोक भित्र छः दों में दिये जाते हैं। कहीं-कहीं सगे में अनेक छत्द भी मिलते हैं । सग॑ के अन्त में अगली कथा की सूचना रहती है । इसमें सन्ध्या, सुर्य, चस्दर, रात्रि, प्रदोष, अन्धकार, दिन, प्रातःकाल, मघ्याह, मृगया, पवंत, चतु, वनः समुद्रः संभोग, वियोग मुनि, स्वग, नगर, यज्ञ, संग्राम, यात्रा, विवाह, मंत, पूत्र-जन्म भौर अभ्युदय आदि का यथाः सम्भव सांगोपांग वर्णन होना चाहिए ) महाकाव्य का नम साधास्णतः उसके लेखक, कथा या नायक आदि के नाम पर रखा जाता है) सगं के नाम वणित कथा के नाम पर रखे जाते हैं । महाकाव्य के लक्षणों का विधान प्रायः प्रत्येक शास्त्रकार नें अपने समय कै प्रसिद्ध महाकाव्यो के आधार पर ही किया हैं । इस प्रकार भामह भौर दण्डी में अपने परववर्ती बाहमीकि, अद्वधीष, कालिदास भौर भारवि के महाकाव्यों के आधार पर अपनी परिभाषाओों को स्वरूपित किया है । विश्वनाथ ने इनके अतिरिक्त माघ भौर श्रीहुषं आदि की कृतियों को लक्ष्य मे रखकर महाकाव्य की अपनी परिभाषा को संवधित किया हैं । रुद्रठ की परिभाषा कश्मीर के महाकाव्यों को लक्ष्य करके बनाई गई हैं ।* त १, उदाहरण के किए देखिये रल्नाकर क(. हरवि जय अथवा मख का श्रोकण्ठ- चरित । रुद्रट की परिभाषा इन महाकाव्यों पर ठीक उतरती है ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now