निबन्ध कला | Nibandh kala

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भाषा की उत्पत्ति, विकास शोर पतन २ परन्तु भाषा केसे बनी; यह एक विचारणीय विषय है । इस सम्बन्ध में मापा-शास्त्रियो के भिन्नमिन्न सत हैं। कोई भापा को ईश्वरदत्त मानता है; कोई मनुष्य-कत । किसी का कहना है किं भापा विकास का परिणाम है । मनुष्य के साथ- साथ भाषा उत्पन्न हुई है द्रोर उसके साथ ही उसका विकास दुरा हैं | अध्यापक मैक्समूलर का कथन है कि एक प्रकार की स्वाभाविक श्रान्तरिकि प्रेरणा विचारों को भाषा का रूप देती है । दोनों में कुछ-न-कुछ सत्य का अंश अवश्य है । ईश्वर्द्त्त वह इसलिए है कि इस जगत्‌ की समस्त वस्तुएँ ईश्वर की देन हैं । उसने मनुष्य को बुद्धि दी है श्रार उसके साथ ही उसे बोलने की शक्ति से सी विभूपित किया है । बोलना प्रत्येक मानव का स्वाभाविक गुण है | परन्तु, केवल चोलने से भाषा का निर्माण नहीं होता । पशु-पक्नी बोलते हूं और मनुष्य भी; पर दोनों की बोलियों में महान्‌ अन्तर है। एक की बोली श्रब्यक्त होती है; दूतरे की सर्ट । एक अपने सूदमतम भावों को व्यक्त नहीं कर सकता श्रार दूसरा उन्हें व्यक्त करने की क्षमता रखता 'है । यद्यपि भापा के व्यापक श्रथ में दोनों की बोलियों को स्थान दिया जा सकता है, तथापि भाषा के जिस रूप को लेकर दम यहाँ उसकी उसपत्ति की चर्चा कर रहे हैं, उसका सम्बन्ध केवल मनुष्यों की भाषा से है, उस भाषा से है जो विकसित हो चुकी है श्रोर जिसका स्वरूप निश्चित हो चुका दै। इसलिए भाषा की उसत्ति के सम्बरन्व मे, उसे केवल ईश्वरदत्त कट देने से काम नहीं चलेगा । हमें उसका एता लगाने के लिए श्रन्तसेच्रादि कीश्रोर जाना दोगा। दमे यदह देलना होगा कि हम रपे वाक्यो में जिन शब्दों का प्रयोग करते हैं वे हमें कैसे प्रास्त हुए । इस प्रकार भाषा की उत्पत्ति का कुछ ज्ञान शब्दों की उत्पत्ति पर विचार करने से हो सकता है । प्रसिद्ध वैदययाकरण स्वीट ने माषा की उत्पत्ति के सम्बन्ध मे श्रपना जो मत मिधारित किया है उसमें सच बातों का सार झ्रा जाता है। उनक्रा कहना दहै किं मनुष्य के ्रादिम शब्द्‌ भाषा की उत्पत्ति




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