तुलसी के भक्त्यात्मक गीत | Tulsi Ke Bhaktyatmak Geet

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका १४ सम्बन्धित है । इसके चार प्रध्याय है ¦ सामाजिक, राजनंतिक विचार, घामिकं विचार तयः श्राष्यात्मिक विचार । इस प्रबन्ध में तुलसीदास पर किए गए कार्यों का ही एक प्रकार से पुषमूल्याकन हुआ है । १२--उपयूकन वपं के आसपास ही “रामभवित शासा” पर श्री रामनिरजन पाण्डेय को पी-एच० डी० की उपाधि मिली 1 यह पुस्तक नवहित्द पब्लिकेशन हैदराबाद से छप भी गई है । एकाघ शोघ ऐसा भी हुमा है जो तुलसीदास से मुस्यतया सम्बन्धित न होकर उनसे ईपत्‌ सम्बन्धित हैं । “जैसे, रामानद सम्प्रदाय तथा हिन्दी साहित्य पर उसका प्रभाव'*--वदरी नारायण श्रीवास्तव (१६१५५) तया “ृतिवासी बगला रामायण श्रौर रामचरितमानस का तुलनात्मक श्रव्ययन'“-रामनाय त्रिपाठी । प्रेरणा श्रत पुन यह कहना प्रावर्यक नही होगा कि तुलसी कै भक्त्या मक गीत शोध-प्रज्ञो की दृष्टि से परिचित ही रहे हैं। १९६५१ ई० में ईर्वर की पूव निश्चित योजना तथा. तुलसी साहित्य के प्रति श्रास्यावान परिवार एवं परिवेश के समुज्ज्वल सस्कार ने मुझे विज्ञान के मरुस्यल से दूर हटाकर साहित्य की पुष्प-वाटिका मे ला खडा किमा ! जव घ्नातकोत्तर कक्षा मे प्रविष्ट हश्रा तो विशेषाध्ययन पत्र मे तुलसी साहित्य का मने भरास्वादन क्रिया एम० ए० कर जाने पर मी जव तुलसी साहित्य कै प्रव्ययन कौ श्रतृत्ति वार-वार मन कौ करुरेदतो रही, तो पुन तुलसी के भ्रसपृष्ट गीतिकाव्य पर ही ने शोधकाय प्रारम्म क्िया। श्ोध-प्रबन्ध को रूपरेखा एव मौलिकता तुलसी के भवत्याट्मक गीत --विदोषत विनयपत्रिका नामक मेरे इस प्रबन्ध के दो खड हैं 1 पहने खड के दो भ्रष्यायो में परम्परा भौर पृष्ठभूमि पर विचार किया गया है । प्रयम प्रध्याय मे भिति के विकासको सक्षिप्त रूपरेखा प्रस्तत कर यह दिखलाने का प्रयास किया गया है कि जो भक्ति ऋग्वेद से निसृत हुई, वही भ्रपने पूणं विकसित रूप में तुलसी के गीतकाव्य में प्रवाहित हुई है ! द्वितीय अध्याय मे भक्त्यात्मक गतो का विकास दिखलाकर उसमे तुलसी के मवत्यातमक गीतो-- विरेषनः विनयपत्रिका से प्रत्यक्ष सम्बन्ध दिखलाया गया है । भक्ति श्रौर भफ्त्यात्सक गीतों पर इतस्तत कुछ निबन्ध या छिटफुट निर्देश भले मिल जाये, किन्तु इस प्रकार का श्रमवद्ध विवेचन लेखक का श्रपना मौलिक प्रयास है! द्वितीय खड़ तुलसीदास की गीतकृतियो --गीतावली, श्रीइप्णुगीतावली तथा विनयपत्रिका से सम्दघित है । इस खड मे छह अध्याय हैं 1 प्रथम भ्रष्याय में गीत कृतियों का विषय श्रौर रूप वी दृष्टि से विवेचन प्रस्तुत क्या गया है । मकपात्मक गीतों के भी कई प्रकार होते हैं श्रौर उन सब प्रकार के गीतों की एक समृद्ध परम्परा है। निन्तु जहाँ तक दिशुद्ध झात्मनिवेदनात्मक




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