आधुनिक हिन्दी कविता सिद्धान्त ओर समीक्षा | Aadhunik Hindi Kavita Siddhant Or Sameeksha
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
552
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about विश्वंभर नाथ उपाध्याय - Vishvambhar Nath Upadhyay
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)५
चाहा जिसका चरित्र निष्कलक हा जो सभी के लिए आदर्श हो । नारद ने
राम की ओर कवि का ध्यान आकपिन क्या बौर आदि कवि ने निर्वेलो के
सहायक राम का वर्णन क्या । आदिकवि के सम्मुख विस्तारोन्मुख राष्ट्र की
रसा, रजन ओर उनति का भी प्रश्न था । आदर्श व्यक्ति वह है जो राष्ट्र
और समाज के नवनिमाण के साथ साथ व्यापक मानवता के हित मे भी
सलग्न रहे। राम एसे ही ये अत. रामवत आचरेत नतु रावणवत्ू ' की
शिक्षा देने के लिए रामायण की रचना की गई ।
जपनं मम्मुख व्यापक लक्ष्य रखेन वापे आदि कवि कौ चेतना इसलिए
उन ब्िया से भिम दिखाई पढ़ती है जिनके सम्मुख सकुचित लक्ष्य दिखाई
पडता है । वाल्मीकि कसी राजदरवार से सम्बन्धित नही थे, उनके सम्मुख
किसी राजा के रजन को प्रश्न नहीं था । जपन रुचि को शासक कौ रुचि की
दिशा मे सलग्त करने के लिए आदि कवि विवश नहीं हुए थे अत स्स्टृतके
दखापे कविया का कान्य बाल्मौकरि के काव्य से भिन्न दिखाई पडता है ।
'रामायण और दरवारी काव्य के अन्तिम महाकाव्य श्रीहप के नैपधघीय
की सुलना कीजिए । दाना भ दो प्रकार की चेतना दिखाई पड़ती है । प्रथम मे
जनवादी चेतना है और द्वितीय म रजनात्मक पाश्व पर ही बल दिया गया है ।
सौन्दर्य का आदर्श मैपधीय मे बदलता दिखाई पता है फलत आग के सक्ष्य मे
भी ये दाना प्रवृत्तियाँ दिदाई पड़ती हैं। भक्त और सन्त कविया म॑ बात्मीकि
के ब्यापक लक्ष्य को रवीकार करने की प्रवृत्ति है । इस सकष्य की शरर्ति के लिए
सना भौर भक्ता न सस्रत की दरबारी प्रवृत्तिया को नया रूप दिया है ।
उदाहरण वे लिए सौन्दर्य जौर भोग का वयन भक्तिशरव्य म कम नही है परन्तु
उन्हे ° दिव्य पृूप के साव सम्बद्ध कर दिया गण है} अत जहां सस्टृतकाव्य
मे केवल *रजन' पर ध्यान दिया गया है, वहाँ भक्तिकाव्य मे मोह द्वारा मोह
१ को वस्मिनसाप्रत सोके गुणावात्वइच दौयें दान,
धमज्ञदच . कृतत्तश्च.. सत्पदादयों दृदन्नत
चारिब्रेण च को युक्त सर्वधृतेपु को हित
विद्धान् क समयश्च कइचेकप्रियदशन ।
आत्स्वान्को नित्कोधो दुतिमान्कोऽनुसुयङ
क्स्यविन्येति देदाइच जातरोपस्य सपुगे 1
--बाल्मीकि रामायण, बालकाड ॥
User Reviews
No Reviews | Add Yours...