पतिव्रता अरुन्धति | Pativrata Arundhati
श्रेणी : पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
102
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about जगदीश झा 'विमल'-Jagdeesh Jhaa 'Vimal'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)७ तपारस्म ।
सन्ध्या दाथ जोडे हई ॑बोखी --“जगत्पिता ! भोपने इस
दीनपर कृपां की, इसको दासी अपना सौभाग्य समश्ती है | यदि
भाय इस अवला पर प्रसन्न हैं तो मुर्मामा चर दैनैकी छपा
कीजिये |“
भगवान--तू अपनी इच्छाक्ते अयुनार जो चाहे माँग सकती
है। में तुमपर प्रसन्न हुं; मुहमांगा चर दू'गा।
संध्या--पित, ! यदि भाप सेविका पर प्रसन्न हैं तो छुपा कर
यह चर प्रदान करें कि मैं संसारकी पत्चिब्रताओंमें स्व श्र प्र रह ।
स्वप्रमें भी पर पुरुपकी ओर आँख न दोड़े, साथहदी यदि कोई पर-
पुरुप चुरे भावले मेरी भर दृष्टि पात करे तो वह उशी लपय नपु
सक होजाय |
चिष्णु--कल्याणो ! तू जैसा चाहती है वैसा ही होगा |
संसारकी पतित्रता नारियोंमें तू सब श्रेष्ठ रहेगी । ख्िर्या तेग
पावन नाम लेकर पतिव्रत जैसे गहन मागंमें अग्रसर हो सकेगी ।
तेरे चताये हुए नियरमोकतो पान्छनकर खियां अपना जीवन सफल
करेंगी । अत्यन्त तेजस्वी पति तुमको प्राप्त दोगा । लेकिन इस
शरीरे त उनको नहीं पा सकेगी ¡ आपि ध्र ष्ठ॒ मेधातीथि चन्द्र
भागा नदीक्षै चिनार य्न कर रहे है, उनके यज्ञम त् अपने इस
शरीरकों त्याग कर, तत्कालद्दों यज्ञ कुएडसे तेरा दूसरा जन्म
होगा । शरीर त्यागति समय तू जिसका ध्यान करेगी दूसरे
ज़न्ममें वहीं तेरा पति होगा ।
संध्या हाथ जोड प्रणामकर घोली-भक्त वत्सर ! ऋषि-यक्षमें
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