नानेश वाणी अखण्ड सौभाग्य | Nanesh Vani Akhand Saubhagy

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Book Image : नानेश वाणी अखण्ड सौभाग्य  - Nanesh Vani Akhand Saubhagy

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अखण्ड सौभाग्य /19 आज दुनिया नीति और धर्म को अलग-अलग समझती है। किन्तु ज़हाँ-जहाँ नीति को ही धर्म समझ लिया गया है, वहाँ-वहाँ विपरीत परिणाम सामने आये हें। बहिने कभी-कभी धार्मिकता के कारण दान करती हैं और मुनियो को गोचरी बहराने को भी ये दान का ही एक रूप मानती हैं। वे यह भी समझती हैं कि यदि वे सावधानी रख कर वेहराती है तो उसका शुम फल उन्हे मिलेगा और यदि सावधानी टूटती है तो उससे हानि होती है । साघु तो परिपूर्ण अहिसा के व्रतधारी होते है तथा सावद्य योग के परिपूर्णं त्यागी । अव सोचें कि यदि कोई बहिन साधु को शुद्ध आहार वेहराने की बजाय उनके निमित्त से तैयार करके आहार बनावे तो उसमे धार्मिकता नहीं मानी जाएगी । इसका एक उदाहरण समझ ले। एक सन्त के आयबिल था सो वैसे आहार के निमित्त वे गोचरी को गये। महाराज को आता देख बहिन जल्दी रसोईघर मे घुसी ओर उसने चट सारे फलके घी से चुपड लिये! फिर वह महाराज को वेहराने लगी तो सन्त ने कहा कि उदं तो लूखा फूलका चाहिये | तब बहिन बोल उटी-मुञ्चे लूखा एलका माता नहीं है ओर अगर मै आपको तूखा फुलका वेहराऊँगी तो आगे मुञ्चे भी लूखा फलका ही मिलेगा । अब उस बहिन के ऐसे विश्वास को क्या कहेंगे-धर्म कहेंगे या नीति कहेंगे ? सोचे कि कोई व्यापारी व्यापार करता है। उसको कहा जाय कि मैं तुग्हे इतने रुपये देता हूँ, तुम मुझे वापिस चुका देना ! यह नीति है। और यह कहा जाय कि मैं इतने रुपये दे रहा हूँ, तुम मुझे अगले जन्म मे इतने ही रुपये वापिस दे देना। यह कैसा विचार है ? जहाँ धर्म नीति से जुड जाता है, ले सोने मे सुहागा हो जाता है। पडौसी दूसरे पडौसी की सेवा करता है डर अगर यह सोचता है कि विना किसी स्वार्थ के मैं सेवा कर रहा हूँ-उह मेरे दुख-दर्द मे काम आवे या नहीं, मैं तो अपना धर्म समझ कर उत्तकौ त्त कर रहा हूँ तो ऐसे स्थान पर समझिये कि नीति पर धर्म का उद लए -- ह-वहां मात्र लेन-देन की भावना नहीं रही है| वह बहिन ल्ट = न्ट येहराते समय यदि इतना ही सोचती कि शुद्ध हार ठेह-ल्य रायम-साघना मे सहायता कर रही हूँ तो वहाँ नीति से सर घन रू माना जाता। धर्म का प्राण मित जाने से नीति स्त =-= == आत्मशुद्धि का कारण भी वन जाती हं} = == == ति ^ ~ र ~ =-= स = = == ल्य र कि नीति ओर धर्म दोनो को साय ल्टचरं न्य्स्म- -र [भ ~~~ -=-.~ सै कि ठ्डा ४ {क सात्र ए और बासी आहार मी है सब झी कस ---




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