समीक्षात्मक निबंध | Samikshatmak Nibandh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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युग-प्रवर्तेक भारतेन्दु स्स्व [६ मे विलक्षण काम करती है! नायकः को दुखान्त के समकझ वनने में मारतेनदु का जो भ्रच्यद्न प्रयोजन है उमे यदि मलो-नांति हृदयंगम क्रिया जाय तो उनकी मूखवूक पर प्रास्चयं हए चिना नदी रदा जाता । इम नाच्कर दार, भारतवर्ष दो स्पों में पाठक या प्रेलक के समक्ष, प्राता है-एक सू है पराधीन भारत का जो सद प्र्मर पीडा, यातना ओर कट स॒हुकर श्रवोगति को प्राप्त हो चुका है, दूसरा रूप उस स्त्राघीन भारत वा भ्राता है जी कभी उन्नति के चरमोत्तर्ष पर पहुँचा हुमा था । भाग्यवादी विचारधारा पर चोट करते हुए भारतेन्दु ने भारनीय जनता षो परिश्रम भ्रौर लगन के साथ उठ खड़े होने का सन्देग दिया है । महू संदेश श्रतीठ यौरव के माध्यम से दर्शक था सामाजिक के हुदंप-दटल पर एक ऐसी छाप छोड जाता है जो उसे प्पे वर्तमानं के प्रति प्रमन्तोप प्रौर विगहूंणा से मर देता है । नाटक के क्षेत्र में मारतेन्दु ने शिल्प की दृष्टि से विदिघ प्रयोग भी किये । प्रहमन, गीलिरुपक नाटिका, माण, सट्रक श्रादि शैलियों में नाटक स्वना करना उनकी बिलक्षण प्रतिमा और श्रद्धुत क्षमता का परिचायक है । नाटक रचना के साय ही जन-जागरण के निममित्त भारतेन्दु वाबू ने समाचार पत्र प्रकाघन वी झभोर ध्यान दिया । भारतेन्दु के उदय से पुर्व हिन्दी भ तीन-चार माप्नाहिक, पालिक श्र मासिक पत्र प्रकाशित हुए थे क्न्तु हिन्दी प्रेमियों वी तृप्ति करने में बोई भी पूर्ण रूप मे ममयं नया। माणेन्ु ने इम अमाव को भ्नुमत्र किया और अपने ही बल पर चार ममावारप्रो का प्रकाशन क्या । कर्विंदचन सुधा, हरिदचन्द्र सैंगजीन, चन्दिकां भर वाल+ चोधिनी नाम से चार पत्चिजाएं प्राण से आई । लेद है कि भारतेन्दु की आाधिक स्थिति तथा हिंदी प्रेमियों को उपेक्षा के कारण ये पत्र-पश्रिकाएं स्यायी रूप ग्रहण न कर मकौ 1 चिन्नु इनता साहित्यिक मानदण्ड उम युग्रवो देखने हद्‌ ध्नाध्य क्टाजास्क्तादै) कतित्त्व के विविध सत्र साहिय-साथता में लोन रहने वाले इस महापुरुप थी दृष्टि कितनी य्यापर भौर पारदर्णी थी यट उसके वारयों को विविधता को देख कर हो समन में था सकता है । नाटक शरोर नाड्ययास्थ को रूपरेखा देकर मारदेत्दु ने निवस्ध, समातोवना, उपन्यास्र, वाब्य, इतिहास भौर घनुराद वा जी महान मापे श्रिया वह हिंदी साहिय के इडिहास में सइंद पमिट प्रधरो प्रित




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