वैदान्त छन्दावली | vaidant chhadavali

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vaidant chhadavali by स्वामी भोले बाबा - Svami Bhole Baba

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पेदान्त छन्दडावली - १४ मकण सुख से विचर | (१) किव्स्थ हु. श्रद्त हु, में बोध हू मैं नित्य है । सक्षय तथा निर्संग श्रात्मा, एक शाश्वत सत्य हु ॥ महि देह हूं, नहिं इन्द्ियाँ हुँ,स्वच्छ से भी स्वच्छतर 1 एसो किया कर भावना, नि.शोक हो सुख से विचर ॥ ( म में देह हू” फाँसी महा, ६ इस पास मे जकडा गया | चिरकाल तक्र फिरता रहा जन्मा किशरा फिर मर गया ॥ मे बोध हू ज्ञानास्त्र ले श्रज्ञान का दे काट सर। श्वछन्द हो, निद्रन्दर हो, भ्रानन्द कर सुख से विचर ॥ निष्क्रिय सदा निस्सग त नही भोक्ता नही । निभय निरञ्जन है ग्रचल, ' श्राता नहो जाता नही ॥ भृत राग कर मत द्रे षकरर, चिन्ता रहित हयो जा निडर। राशा किसी की व्यो करे, संतप्त हो सुख से .विचर !। र्ट धह विव तुभसे श ८ तु विर्वमें भरपूर है। हू वार है, तू पार है, तू पास है तु दूर है ॥ उत्तर तुही दक्षिण तृहदी, तु हे इधर तू है उधर ) दै त्याग मनकी क्षुद्रता, निशेक हो सुख से विचर, 1] ( १४५ )




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