जीवंधर चरित्र | Jeevandhar Charitra

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Jeevandhar Charitra by पं. नत्थमल बिलाला - Pt. Natthmal Bilalaलालचन्द्र जैन - Lalchandra Jainशुभचन्द्राचार्य - Shubchandracharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(७) सबेया २३ कामिनि ढोलत हैं दसहूँ दिस नेवर घोर मचावन लागे । गावत ह मधुरे खुर सो पुनि कान क॑ ललचावन लागे ॥ शीत सुगंध समीर बहे तन लागत खेद बचावन लागे । फिर बन वीथिन भँ तिन देखत ही मन मोहन लागे ॥ ॥ दाहा ॥ तिन नगरनि के निकट ही, परी धान्य की राशि । शोभित है गिरबर किथौं, करत देव तेह बास ॥ अडिल्ल दोई ग्राम आराम नगर पत्तन किष । पवत शिखर मंभार महल पंकति लखे ॥ रौर ठीर जिनभवन अधिक शोभा धरे । ध्वजा शिखर फहराय लखत सुर मन हरे ॥ तहाँ मनोह सरवर निरमल जलसूं भरे । किधों संत पुरुषन के मन देंगे खरे ॥ तामें लघत सरोज श्रमर गुंजत फिरें । करे कलि नर नारि खेद तन के हरे ॥ दौर दौर उपवन सोह जु सुहावने । किथौं जियन के गुण राजत भन भावने ॥ उपजावत दँ काम कमल पग एग विषै। फल लन कर भरे इृक्ष लूमत लम ॥




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