हिन्दुस्तानी त्रैमासिक भाग-22 | Hindustani Tramasik Bhag-22
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
100
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हिप
{७} कैसौ प्रीति चकोर की चदा ही माने
ऐसी ओर मिवाहिये ओ बा की ओो जनि
साज़ना ! मेड़ा सन घरम सूं सिमा ससने साजनः !
(८) छज्जे बैठी केसरी रे मेरा बल पतियार
तिरेव तम क बृद्धि गया मेरे सेन रहे झरलाय।
दरूपतियार--मेडा
(उपरोक्त दोनों देदियों में सित्धी का मेंडा शब्द आता हैं. इसलिए ये पंजाब मै
प्रचकित होंगी ।
(९) जो दुम चलोगें दो प्राण तजूंगी रोय रोय अंखिया लाल करँगी
चलत न देऊ, माइ अपने पिय कूं--राग सोरठी
(१०) इूंगर दूंगर हूँ भूवि सन मोहना छाल ।
क्यूं ही न पायो मैं पीय हो मन मोहना लाल |
(११) दिल्छी तमं दरवाजे गोसे चदी कवाण'
सँचण वालो को नहीं किस पर करूँ गुमान 1
या मै नाजर छाँ जी या मैं बालक छां जी ।
हृर्वे हस्वे मण गूमानी पीया द्र नाजर छंजी ।
(१९) मेरे पीउ की खबर को ल्यावे मेरे बंभन ।
दूंगी रे करकों कंकना--मेरे० |
(१३) हाथ का दृगी मूदडो ग को नवक्षर हार रे लहरियों मेरे भीजेगों
भीजे छै री नाह रे कुहरियो मेरे भीजेगो ।
पाथर कोड तैसे मृडो नदिय वहाङं तेते भूर (चूर) लह
साहिब सूँ प्रीतिं न तोडूं जोरू, सो सो वार रे । छह ०
मैं गुणबंती गोरड़ी छल छबीलों जार रे
(जिन हषं कृत महाबल मलया सुदरि रास सं० १७५१)
उपरोक्त देश्चियो मे अधिकार अब विस्मृत हो चुकी हैं। इन देशियों वाछे लोक-मीत
तली कै भास-पास के हिन्दी प्रदेश में उस समय काफी प्रसिद्ध होंगे। राजस्थान में भी उनका
चार रहा होगा, इसीलिए उनकी तजें में जैन कवियों मे अपने रासों की ढालें बेंसाई ।
जैसा कि पहुलें लिखा गया है, श्रीकृष्ण वृश्दावन आदि के तो अनेंकी लोक-गीत व भजन
सिद्ध रहें हैं और उनकी तजें में जैन, कवियों ने बहुत सी ढ़ालें रची } रसे शताधिक् हिन्दी
पेक-गीतों की सूची भी देशाई जी की देक्षियो की अनुक्रमणिकर में प्राप्त है लेख विस्तार भय
इस लेख में उन छोक-गीतों के नाम नहीं दिये गये हैं। अन्य स्वतन्त्र लेख में उन्हें फिर कभी
कषित किया जायगा ।
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