भारत निर्माता | Bhaarat Nimarta
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
84
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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१४
दिल दहल उठा ओर उन्होने इस नए मोचं पर भी
इस विद्रोही का सामना करने के लिए कमर बॉधना
शुरू किया । सबसे पहले मद्रास के गवर्नमेण्ट कालेज
के शकर शास्त्री नामक किसी अध्यापक ने दिसबर,
१८१६ ई०, के 'मद्रास क्रियर' नामक अग्रेजी पत्र
मे कटु आलोचना करते हुए उन पर आक्रमण
करिया, जिसका प्रत्युत्तर राममोहन ने ए डिफेन्स
आफ हिन्दू थीइज्म' ( अर्थात् हिन्दू आस्तिकवाद
का मण्डन' ) शीर्षक अपनी सुप्रसिद्ध अग्रेजी रचना
द्वारा दिया । इसके शीघ्र ही बाद मद्रास कै पडतो
का पक्ष लेते हुए स्वय उनके ही अपन प्रान्त बगाल
के कई धर्मध्वजी गोस्वामी ओर भद्राचायं भी एक
साथ ही उन पर टूट पड़े । इस प्रकार मूतिपूजा
और बहुदेवोपासना के पक्ष-विपक्ष में वाद-विवाद
का एक घोर सग्राम-सा छिंड गया, जिसमें एक
ओर थे अकेले राममोहनराय, जो अपने गहन शास्त्र-
ज्ञान और अकाट्य तर्क के बल पर प्राचीन भारतीय
धर्म के अनुसार केवल एक ही निर्गण ब्रह्म का
प्रतिपादन कर हमारी धर्म-मदाकिनी मे वाद को
उत्पन्न हो जानेवाली पकरूपी अध भावनाओं का
खडन कर रहे थे, तो दूसरी ओर हर प्रकार के
प्रगतिशील परिवर्तन की राह में रोडा अटकानें के
लिए उद्यत हमारा वह कट्टर अध समाज था,
जिसकी एकमात्र युक्ति थी उन रूढियो को दुहाई
देना, जो गास्त्रो से भी अधिक उनके मन पर अपना
आधिपत्य जमाए हुए थी |
ईसाई मिशनरियों से विवाद
इसी बीच ईसाई मत कं त्रिमूतिवाद ओर ईसा
मसीह् कौ अलौकिकता कं प्रश्न को लेकर कलकत्त
के समीप सीरामपुर मे अड्डा जमाए हुए विदेशी
ईसाई मिश्नरियों के साथ भी उनका एक लम्बा
और कटु विवाद छिड गया । बात यह हुई कि सभी
धर्मों के थाइवत सत्य के प्रति श्रद्धा का भाव
रखनेवाले उदारमना राममोहन ने अपने एक ईसाई
मित्र पादरी आदम और अन्य एक योरपीयन की
सहायता से बाइबिल के कुछ अशो का वंगलाम
अनुवाद किया था । इसके अलावा अलग से 'प्रिसप्ट्स
ऑफ जीसस' ( अर्थात् ईसा के धर्म-नियम ) के नाम
से एक अग्रेजी पुस्तक भी उन्होने १८२० ई० में
प्रकाशित की थी, जिसमे बाइबिल मे से ईसा के
प्रमुख उपदेशो को चुनकर एक सकलन के रूप में
प्रस्तुत करने का प्रयास किया था । इस सग्रह में
उन्होने बाइबिल के ऐसे अशो को जानबूझकर छोड़
दिया था, जिसमे किसी प्रकार के अलौकिक चम-
त्कारो अथवा अन्य करामातो का उल्लेख था ।
कारण, एक तो इन बातो में उनका विद्वास न था,
दूसरे हमारे लिए इन वातो का कोई महत्त्व भी न
था । परन्तु यह कोट-छींट भला उन धर्मान्धि मिश-
नरियों को क्योकर सहन हो सकती थी ! उन्होंने
इस चेप्टा से बेतरह रुप्ट होकर 'फ्रेड ऑफ इन्डिया'
ओर समाचार-दपंण' नामक अपने पत्रो मे अत्यन्त
कट्तापूरवंकं राममोहनराय पर धावा बोल दिया ।
साथ ही मानो बदला चुकाने के लिए हिन्दू धमं ओर
सस्कृति पर भी अशोभनीय रीति सें कीचड उच्ालना
सुरू किया । पर राममाहन इन प्रहारो सं दव
जानेवाले व्यक्ति न थे । उन्होने एकर ओर तौ पूनः
ए सेकण्ड डिफन्स आफ दी मानोथीस्टीकल
सिस्टम आंफ दी वेदाज' ( अर्थात् 'वेदो के एकेश्वर-
वाद का पुनर्मण्डन' ) गीपेक एक ट्रेक्ट लिखकर
अपने सहधर्मो आलोचको का मूंह् वन्द कर दिया)
दूसरी ओर अपने नवसस्थापित ब्राह्मनिकल मंगेजीन'
नामक अग्रेजी पत्रमे ईसाई जगत् के नाम क्रमण
अपनी तीन प्रसिद्ध 'अपीले' निकालकर उन मिगनरियो
के मिथ्या रापो का भी करारा जवाब दे दिया ।
इन अपीलों द्वारा ईसाई घर्म-सम्बन्घधी अपने गहन
ज्ञान का परिचय देकर उन्होंने विलायत तक के
धर्मशास्त्रियो की आंखे बोल दी ।
पादरी आदम का प्रसंग
इन्हीं दिनों घटनाचक्र ने एक और रग बदला ।
उनके उपर्युक्त विवाद करा उनके अन्तरग मित्र पादरी
आदम पर इतना गहरा प्रभाव पडा कि वह
सीरामपुर के “ट्रनिटेरियन' ( त्रिमूतिवादी ) चचंसे
किनारा कसकर यूनिटेरियन' ( एकेड्वरवादी )
बन गया ! साथ ही कुछ मित्रों के सहयोग से
उसने कलकत्ते में एक प्रृथक् यूनिटेरियन उपासनालय
भी प्रस्थापित कर लिया, जिसकी नियमित प्राथं-
नाओ में राममोहन भी शरीक होने लगे । इस पर
लोगों मे यह श्रम फैलने लगा कि राममोहन-
राय विधिवत् ईसाई बना लिए गए '. परन्तु
राममोहन-जैसे उदारचेता महापुरुष का व्यक्तित्व
भला साधारण जनो की समझ में क्योकर आ
सकता था-वह कोई मामूली व्यक्तित्व तो था
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भारत-निर्माता
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